सुधि आँगन ....
याद आये वो बैन तुम्हारे
तृषित नयनों का सिंगार हुआ
संग समीर के
उलझी अलकें
स्मृति कलश से फिर
छलकी पलकें
याद आये वो अधर तुम्हारे
फिर मूक पल हरसिंगार हुआ
स्मृति मेघों की
निर्मम गर्जन
देह कम्पन्न का
करती अभिनन्दन
याद आये वो स्पर्श तुम्हारे
आलिंगन क्षण अंगार हुआ
जब देह से देह की
गंध मिली
तब स्वप्निल पवन
मकरंद चली
याद आये वो गीत तुम्हारे
सुरभित नीरव संसार हुआ
श्वास का श्वास से
मेल हुआ
शुरू तृप्ति का अदभुत
खेल हुआ
याद आयी कजरारी पलकें
सुधि आँगन में हाहाकार हुआ
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ सर प्रस्तुति आपकी स्नेहिल एवं सुझावात्मक प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। भविष्य में इंगित बातों का ध्यान रखूंगा। हार्दिक आभार सर।
आदरणीय Shyam Narain Verma जी प्रस्तुति पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार।
इस खूबसूरत रचना की हार्दिक बधाई | सादर |
आदरणीय narendrasinh chauhan जी प्रस्तुति पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
खूब सुन्दर रचना
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