For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बह्र : २१२२ १२१२ २२

 

ये दिमागी बुखार टेढ़ा है

यही सच है कि प्यार टेढ़ा है

 

स्वाद इसका है लाजवाब मियाँ

क्या हुआ गर अचार टेढ़ा है

 

जिनकी मुट्ठी हो बंद लालच से

उन्हें लगता है जार टेढ़ा है

 

खार होता है एकदम सीधा

फूल है मेरा यार, टेढ़ा है

 

यूकिलिप्टस कहीं न बन जाये

इसलिए ख़ाकसार टेढ़ा है

-------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 739

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 12, 2016 at 9:30am

यूकिलिप्टस कहीं न बन जाये

इसलिए ख़ाकसार टेढ़ा है----हाहाहा वाह्ह्ह्ह अच्छी सफाई दी है 

मजेदार ग़ज़ल बहुत बहुत बधाई आ० धर्मेन्द्र जी 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 6, 2016 at 4:20pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय जयनित जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 6, 2016 at 4:20pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय नीलेश जी

Comment by जयनित कुमार मेहता on May 2, 2016 at 7:39am
आ. धर्मेन्द्र जी, एक अलग ही तरह की ग़ज़ल प्रस्तुत की आपने। हार्दिक बधाई!!
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2016 at 12:11pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है ... अचार टेढ़ा है कहना कुछ ठीक नहीं लग रहा है ..
सादर 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 1, 2016 at 4:14am

शुक्रिया बृजेश जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 1, 2016 at 4:13am

बहुत बहुत शुक्रिया सुशील जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 1, 2016 at 4:13am

शुक्रिया अनुज जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 1, 2016 at 4:13am

शुक्रिया नादिर ख़ान साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 1, 2016 at 4:12am

शुक्रिया रवि शुक्ला जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
10 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service