For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अनाम ख़त

 

चेरी के फूल जैसे

मुरझाये हुए शब्दों को

जब छु जायेंगी तुम्हारी नफ्स

तो शायद,यह फिर से सब्ज़ हो खिलें

और हाँ, इनके पीछे

छुपे हुए अर्थों की खुश्बू

उड़ने लगे तुम्हारे कमरे में

 

सावन के बादलों-सी बेचैनी

मंडराएगी सिने पे कहीं

और जब तुम्हारी आँखों से बरसेगी झड़ी

होंठ पे उगती इक नन्ही मुस्कान

यूँ ही दब जायेगी दर्द के ओलों से

तब यह मुर्दे शब्द और भी सजीव लगेंगी

 

तो क्या लिखूं ऐसा

की बात तुम तक पहुंचे ?

लिखूं कि जो अशोक का पेड़ तूम लगा गई थी

वो अब इतना बड़ा हो गया है कि

अब मुझसे तुम्हारा पता माँगता है

पूछता है कि कब लौट आओगी तुम ?

 

जहाँ हम अक्सर मिला करते थे

वो पंजाबी ढाबा अब टूटकर

एक बहुत बड़ा मॉल बन चूका है

पर अभी भी है उसी नुक्कड़ पे

पनवाड़ी की छोटी-सी दूकान

जिसका मालिक हमेशा मुस्कुराता रहता है

सुनता हूँ आजकल तबियत खुश नहीं है उसकी

 

रेहड़ीवाली चाय की दुकान

अब नहीं लगती मंगल बाज़ार में

फिर भी रौनक बरक़रार है लोगों के चेहरों पे

क्योंकि खुल चूका है यहाँ

अंग्रेजी शराब की दुकान

पर मेरे जेहन में इक डर रहता है हमेशा

की इसी बहाने कभी तुम

मुझसे मेरी तन्हाई का हिसाब माँग बैठो

 

 

लिखूं की माला बेचनेवाली वो देहाती लड़की का

पिछले महीने बलात्कार हो गया

पुलिस अब तक पकड़ नहीं पाई है मुजरिमों को

अब ऐसे शहर में जीने और मरने की परिभाषा

क्या हो सकती है ?

 

मोहल्ले में अख़बार डालनेवाला लड़का

कल शाम गुजर गया सड़क हादसे में

और लापता है ट्रक ड्राईवर

कुछ भी हो सकता है

कहीं भी, कभी भी

 

मकान मालिक का इकलौटा बेटा

जिसकी शादी हाल ही में हुई है

छोड़ आया है वो घर के भगवान् को

महानगर के किसी वृद्धाश्रम में

 

जहाँ मिले थे हम पहली बार

वो मंदिर का एक हिस्सा टूट चूका है

जैसे मैं टुटा हुआ हूँ तुम्हारे बिना

टूट चुके है लोग इस तरह की

अब एक दीवार दुसरे दीवार में कान नहीं देता

 

पता नहीं, क्या लिखूं ?

आँखों देखा हाल लिखूं

या फिर कोरी कल्पना ?

कौन जानता है इस शहर में

किसका कैसे टुटा है सपना ?

मैं जो लिख रहा हूँ

क्या तुम पढ़ सकोगी ?

केवल ऊपर उखड़े शब्द ही पढ़ पाओगी तुम

क्योंकि, अन्दर छुपे हुए शब्द

आँखों से नहीं पढे जाते !

 

 राजकुमार श्रेष्ठ

 

 मौलिक व अप्रकाशित रचना

 

Views: 442

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 12, 2016 at 9:21am

मिथिलेश भैया की बातों से सहमत हूँ वर्तनी दोष रचना की ख़ूबसूरती बिगाड़ रहे हैं | वैसे इस सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई तो बनती ही है आ० राजकुमार जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 3, 2016 at 5:06pm

आदरणीय राजकुमार जी, आपकी किसी पहली प्रस्तुति से गुजर रहा हूँ. प्रस्तुति में वर्तनी और व्याकरण दोष ने इसके सौन्दर्य को प्रभावित किया है. ऐसा है या नहीं?

चेरी के फूल जैसे

मुरझाये हुए शब्दों को

जब छु जायेंगी तुम्हारी नफ्स

तो शायद,यह फिर से सब्ज़ हो,  खिलें

और हाँ, इनके पीछे

छुपे हुए अर्थों की खुश्बू

उड़ने लगे तुम्हारे कमरे में

 

सावन के बादलों-सी बेचैनी

मंडराएगी सिने पे कहीं

और जब तुम्हारी आँखों से बरसेगी झड़ी

होंठ पे उगती इक नन्ही मुस्कान

यूँ ही दब जायेगी दर्द के ओलों से

तब यह मुर्दे शब्द और भी सजीव लगेंगी

 

तो क्या लिखूं ऐसा

की बात तुम तक पहुंचे ?

लिखूं कि जो अशोक का पेड़ तूम लगा गई थी

वो अब इतना बड़ा हो गया है कि

अब मुझसे तुम्हारा पता माँगता है

पूछता है कि कब लौट आओगी तुम ?

 

जहाँ हम अक्सर मिला करते थे

वो पंजाबी ढाबा अब टूटकर

एक बहुत बड़ा मॉल बन चूका है

पर अभी भी है उसी नुक्कड़ पे

पनवाड़ी की छोटी-सी दूकान

जिसका मालिक हमेशा मुस्कुराता रहता है

सुनता हूँ आजकल तबियत खुश नहीं है उसकी

 

रेहड़ीवाली चाय की दुकान

अब नहीं लगती मंगल बाज़ार में

फिर भी रौनक बरक़रार है लोगों के चेहरों पे

क्योंकि खुल चूका है यहाँ

अंग्रेजी शराब की दुकान

पर मेरे जेहन में इक डर रहता है हमेशा

की इसी बहाने कभी तुम

मुझसे मेरी तन्हाई का हिसाब माँग बैठो

 

 

लिखूं की माला बेचनेवाली वो देहाती लड़की का

पिछले महीने बलात्कार हो गया

पुलिस अब तक पकड़ नहीं पाई है मुजरिमों को

अब ऐसे शहर में जीने और मरने की परिभाषा

क्या हो सकती है ?

 

मोहल्ले में अख़बार डालनेवाला लड़का

कल शाम गुजर गया सड़क हादसे में

और लापता है ट्रक ड्राईवर

कुछ भी हो सकता है

कहीं भी, कभी भी

 

मकान मालिक का इकलौटा बेटा

जिसकी शादी हाल ही में हुई है

छोड़ आया है वो घर के भगवान् को

महानगर के किसी वृद्धाश्रम में

 

जहाँ मिले थे हम पहली बार

वो मंदिर का एक हिस्सा टूट चूका है

जैसे मैं टुटा हुआ हूँ तुम्हारे बिना

टूट चुके है लोग इस तरह की

अब एक दीवार दुसरे दीवार में कान नहीं देता

 

पता नहीं, क्या लिखूं ?

आँखों देखा हाल लिखूं

या फिर कोरी कल्पना ?

कौन जानता है इस शहर में

किसका कैसे टुटा है सपना ?

मैं जो लिख रहा हूँ

क्या तुम पढ़ सकोगी ?

केवल ऊपर उखड़े शब्द ही पढ़ पाओगी तुम

क्योंकि, अन्दर छुपे हुए शब्द

आँखों से नहीं पढे जाते !

Comment by Shyam Narain Verma on April 30, 2016 at 10:12am
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service