For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल(उल्फत का रंग है )

ग़ज़ल (उल्फत का रंग है )

------------------------------------

221 --2121 --1221 ---212

ऐसा लगे है चढ़ गया उल्फत का रंग है ।

जो कल मेरे ख़िलाफ़ था वह  आज संग है ।

वह मेरे पास बैठ गए सब को छोड़ के

यूँ हर कोई न देख के महफ़िल में दंग  है ।

तरके वफ़ा का मश्वरा मत दीजिये हमें

सब जानते हैं आपका ये सिर्फ ढंग है ।

जिस दिन से जायदाद गए बाप छोड़ कर

घर तब से बन गया मेरा मैदाने जंग है ।

मैं एक क़दम बढ़ा तो बढ़ा वह कई क़दम

मेरा हबीब देख लो कितना दबंग है ।

नज़रें अभी न फेर सहारा तो ढूंड लूँ

बिन डोर अर्श पर कहाँ उड़ती पतंग है ।

तस्दीक़ होशियार रहो ऐसे शख़्स से

लब  पर वफ़ा निगाह मगर जिसकी तंग है ।

(मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 763

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जयनित कुमार मेहता on May 2, 2016 at 7:51pm
:-(

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, हड़बड़ी में बिना सोचे समझे लिखने का नतीजा है ये। मैं इसके लिए शर्मिंदा हूँ।
अब से ध्यान रहेगा कि मंच पर ऐसे प्रतिक्रियाएँ दी जाएं जिससे रचनाकार के साथ-साथ अन्य सदस्यों को भी लाभ मिले।
ग़लती का अहसास करवाने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ।
आदर सहित!!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 7:15pm

भाई जयनित जी, 

//आ. तस्दीक़ अहमद साहब, बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। बाकी समर कबीर जी ने अपना अमूल्य सुझाव दे ही दिया है //

आप इतना कण्ट्राडिक्शन वाले वाक्य क्यों लिखते हैं ? बहुत अच्छी ग़ज़ल आप कह रहे हैं और इशारा समर साहब के सुझाव की ओर का भी दे रहे हैं जो इस ग़ज़ल की लेफ़्ट-राइट-सेण्टर करते दिख रहे  हैं ! आप या तो ’बहुत अच्छी ग़ज़ल’ का अर्थ नहीं जानते या फिर ग़ज़लकार को अनावाश्यक चने की झाड़् पर चढ़ा रहे हैं. जैसा कि अमूमन अन्य सोशल साइटों और ब्लॉगों पर किये जाने की परिपाटी है. आदरणीय तस्दीक अहमद साहब की शायरी को ऐसी टिप्पणियों से क्या फायदा मिलेगा ? या किसी रचनाकार को ऐसी टिप्पणियों या प्रतिक्रियाओं से क्या अपेक्षा होगी ? यह तो अनावश्यक की ’वाह-वाही’ हुई न ?

क्या आप आदरणीय तस्दीक अहमद साहब को निरा ’वाह-वाही’-पसंद रचनाकार समझते हैं ?

हममें से तो कई ऐसा नहीं समझते.  देखिये  आदरणीय नादिर भाई की टिप्पणी ? कितनी सधी हुई प्रतिक्रिया दी है उन्होंने ! ऐसी ही प्रतिक्रियाओं से किसी रचनाकार का सार्थक रूप से भला होता है.

शुभेच्छाएँ

 

Comment by जयनित कुमार मेहता on May 2, 2016 at 6:05pm
आ. तस्दीक़ अहमद साहब, बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। बाकी समर कबीर जी ने अपना अमूल्य सुझाव दे ही दिया है।
सादर!!
Comment by नादिर ख़ान on May 2, 2016 at 5:53pm

आदरणीय तस्दीक साहब जैसा के आप खुद ही कह रहे हैं ग़ज़ल पर ज़्यादा वक़्त नहीं दे पाए....  जनाब समर साहब का सुझाओ बहुत उम्दा है।  यूँ शब्द से आपका मोह समझ नहीं आया जबकि मिसरे को समझ पाना मुश्किल हो रहा है ,  हो सकता है आपने कुछ और बेहतर सोचा हो और बहुत जल्द हमें परिपक्व  ग़ज़ल पढ़ने को मिले मुझे इंतज़ार रहेगा सादर..... 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 1, 2016 at 8:00pm

मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , ग़ज़ल को अपना क़ीमती वक़्त और मश्वरा देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
शेर 2 का सानी मिसरा आपका अच्छा है लेकिन मैं यूँ लफ्ज़ हटाना  नहीं चाहता , आपकी बात दुरुस्त है ,ज़्यादा वक़्त नहीं दे  पाया। ..... शुक्रिया

Comment by Samar kabeer on May 1, 2016 at 4:25pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,लगता है ग़ज़ल जल्दबाज़ी में कही है आपने,कुछ सुझाव हैं अगर आप पसन्द फरमाएँ:-
दूसरे शैर का सानी मिसरा इस तरह करलें:-
"ये देख कर तो हर कोई महफ़िल में दंग है"
तीसरे शैर का सानी मिसरा इस तरह कर लें:-
"सब जानते हैं आपका ऐसा ही ढंग है"
चौथे शैर के ऊला मिसरे में 'गए'को "गया"कर लें ।बाक़ी शुभ शुभ इस प्रयास के लिये बधाई आपको ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
3 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीय विभारानी श्रीवास्तव जी। विषयांतर्गत बढ़िया समसामयिक रचना।"
10 hours ago
vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123विषय : जय/पराजय आषाढ़ का एक दिन “बुधौल लाने के…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
18 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service