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ग़ज़ल
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आओ चेहरा चढ़ा लिया जाये
और मासूम-सा दिखा जाये
केतली फिर चढ़ा के चूल्हे पर
चाय नुकसान है, कहा जाये
उसकी हर बात में अदा है तो
क्या ज़रूरी है, तमतमा जाये ?
फूल भी बदतमीज़ होने लगे
सोचती पोर ये, लजा जाये
रात होंठों से नज़्म लिखती हो,
कौन पर्बत न सिपसिपा जाये ?
रात होंठों से नज़्म लिखती रही
चाँद औंधा पड़ा घुला जाये ..
काव्य-संग्रह छपा लिया उसने
अब तो उसका कहा सुना जाये
कौन इन्सान क्या पता ’सौरभ’
किस कहानी में नाम पा जाये
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
गुरु कौन है यहाँ भइया ? गुरु तो यह मंच है. इसके बाद के सारे गुरु-गुरुदेव हवा-हवाई हैं ..
ओह ! यहीं पता चल जाता है कि आप नये सदस्य है या अभी तक नये बने रहना चाहते हैं ..
:-))
आप मेरी प्रस्तुति को अपने प्रखर विचारों से महरूम न रखें, जयनित भाई. यदि कोई बात सुधार के तौर पर कहना आवश्यक लग रही है, तो बेलाग कहें. आपके कहे का लाभ मेरे साथ-साथ अन्य सदस्यों को भी मिलेगा न ?
आदरणीय,मुझे पता है कि मेरे कहे का मर्म आप समझ चुके हैं। मगर पुनः कहना पड़ रहा है...हाँ,यह एक सीखने-सिखाने का मंच है। किन्तु,शिष्य को गुरु की रचनाओं पर टिप्पणी करने में होनेवाली हिचक स्वाभाविक नहीं है?
भाई जयनित मेहताजी, मुझको लेकर अपनी सारी खुन्नस मेरी रचनाओं पर क्यों निकालियेगा ? इन बेचारियों ने कौन सी गलती की है, भाई ? हा हा हा हा...
खुल कर कहिये. ये तो आप भी भलीभाँति जानते हैं, कि ओबीओ पर रचनाकार नहीं रचनाएँ प्रभावी होती हैं. फिर तो रचनाओं को उनके अनुसार ही बर्ताव मिले न ? अलबत्ता, इतनी सी ग़ुजारिश है कि मेरी ग़ज़लों के हिन्दुस्तानी अंदाज़ को ज़रूर ध्यान में रखियेगा.
आपके कहे का इंतज़ार है.
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