For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -नूर- ख़ुदाया आज फिर धडकन थमी है

१२२२/१२२२/१२२ 

ख़ुदाया आज फिर धडकन थमी है,
किसी की याद दिल में चुभ रही है.
.
मसीहा को मसीहाई चढ़ी है,
मसीहा को हमारी क्या पड़ी है.
.
कहीं पर अश्क मिट्टी हो रहे हैं
कहीं प्यासी तड़पती ज़िन्दगी है.
.
कई जुगनू चमक उट्ठे हैं
लेकिन कमी सूरज की रातों में खली है.
.
मेरी नज़रें जमी हैं आसमां पर,
न जानें क्यूँ वहाँ भी ख़लबली है.
.
रगड़ता है हर इक साहिल पे माथा,
समुन्दर की ये कैसी बे-बसी है.
.
गुनाहों में गिनीं जाएगी चुप्पी,
ये सच का साथ देने की घड़ी है.
.
ठिकाना ‘नूर’ का कब है ये दुनिया,
है उसका घर जहाँ पर रौशनी है.
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 533

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 12, 2016 at 8:26pm

शुक्रिया आ. रामबली गुप्ता  जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 12, 2016 at 8:25pm

शुक्रिया आ. मिथिलेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 12, 2016 at 8:25pm

शुक्रिया आ. नादिर खान साहेब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 12, 2016 at 8:25pm

शुक्रिया आ. अनुज जी ..
 ..आप को शेर पसंद आया, इसके लिए आभार 

Comment by रामबली गुप्ता on May 12, 2016 at 5:47pm
वाह आद.नीलेश जी मन प्रसन्न हो गया आपकी गज़ल पढ़ के । आकाश भर बधाई स्वीकार करें।सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 11, 2016 at 2:19pm

आदरणीय निलेश जी, हमेशा की तरह शानदार ग़ज़ल. वाह वाह वाह. आसान लफ़्ज़ों में कथ्य जो अर्थविस्तार पा रहे हैं वह अद्भुत है. इस शानदार ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई. 

Comment by नादिर ख़ान on May 10, 2016 at 6:24pm

वाह आदरणीय नीलेश जी खूब कहा हमेशा की तरह
रगड़ता है हर इक साहिल पे माथा,
समुन्दर की ये कैसी बे-बसी है. ऐसा भी होता है, समय क्या क्या न करवाए (कुछ तो कमज़ोरी रही होगी )...
.
गुनाहों में गिनीं जाएगी चुप्पी,
ये सच का साथ देने की घड़ी है. बहुत बेबाकी से बड़ी बात, आसान लफ़्ज़ों में कह गए सर जी

कई जुगनू चमक उट्ठे हैं
लेकिन कमी सूरज की रातों में खली है. enter लेकिन के बाद दबना था एडिट तो आप कर ही लेंगे
सादर....

Comment by Anuj on May 10, 2016 at 5:24pm

गुनाहों में गिनीं जाएगी चुप्पी, 

ये सच का साथ देने की घड़ी है.

ये वो शेर है जो आज के वक्त की जरूरत है.

ये वो शेर है जो दुष्यंत की परम्परा को आगे ले जाता है. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service