For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रिय से रँगवावन को चुनरी

प्रिय से रँगवावन को चुनरी,
मन मोद लिए मुसकाय चली।
सब छाड़ि जहाँ के लाज सखे!
भरि थाल गुलाल उड़ाय चली।
पट पीतहि लाल हरा रँग से,
मन प्रेमहि रंग रँगाय चली।
नव यौवन के मद से सबके,
मन में मदिरा छलकाय चली।।1।।

सुंदर पुष्प सजा तन पे,
लट-केश -घटा बिखराय चली है।
अंजित नैन कटार बने,
अधरों पर लाल लुभाय चली है।।
अंगहि चंदन गंध भरे,
मदमत्त गयंद लजाय चली है।
हाय! गयो हिय मोर सखे!
कटि जूँ गगरी छलकाय चली है।।2।।

रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 457

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रामबली गुप्ता on May 12, 2016 at 5:35pm
रचना की आत्मीय प्रसंशा के लिए हृदयतल से आभार आदरणीय सुशील सरना जी एवं आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 11, 2016 at 1:46pm

आदरणीय रामबली जी, दोनों सवैया पद सुन्दर है हार्दिक बधाई.

Comment by Sushil Sarna on May 9, 2016 at 7:46pm

हाय! गयो हिय मोर सखे!
कटि जूँ गगरी छलकाय चली है।।2।।

वाह आदरणीय वाह प्रेम रास में डूबी इस प्रस्तुति की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है। शब्दों का अलंकारिक प्रयोग इस के सौंदर्य को और भी सुंदर बना रहा है। हार्दिक हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।

Comment by रामबली गुप्ता on May 9, 2016 at 6:05pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय समर कबीर जी
Comment by Samar kabeer on May 9, 2016 at 6:02pm
जनाब रामबली गुप्ता जी आदाब,बहुत ख़ूब वाह, इस सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service