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जो भारी ही रहा, बैठा हुआ है
उड़ा वो ही जो कुछ हल्का हुआ है
ग़लत कहते हैं जो कहते हैं तुमसे
यक़ीं मरकर भी क्या ज़िन्दा हुआ है ?
ठहर जा गर्दिशे अय्याम दर पर
ये मंज़र दर्द का देखा हुआ है
फटेगा एक दिन बादल के जैसे
जो आँसू आपने रोका हुआ है
बुढ़ापा फिर न याद आ जाये उसको
जो बच्चों में अभी बच्चा हुआ है
न जाने कौन धोखे बाज निकले
सभी को है यक़ीं , धोखा हुआ है
नहीं समझा सकोगे धर्म अब तुम
सभी का अब ख़ुदा पैसा हुआ है
ज़रा दड़बे से बाहर आयें , देखें
मुझे पूछें नहीं क्या क्या हुआ है
ख़बरची एक व्यापारी है, जिसने
ख़बर नुक्सान का रोका हुआ है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरनीय समर भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।
आदरणीय अनुज भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।
आदरणीय सुरेश भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय मनन भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।
ख़बरची एक व्यापारी है, जिसने
ख़बर नुक्सान का रोका हुआ है
मैं तो इसी शेर पर अटक गया हूँ. इस शेर की उम्र बहुत लम्बी है. यह लफ़्ज़ों में एक घुस्सा है जो सीधे आज की मिडिया की नाक पर है.
शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी ऐसे शेरों से नवाजने के लिए.
सादर
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