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ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल-नूर

२१२२/२१२२/२१२१२ 
.

ज़िन्दगी क़दमों पे थी तब शूल थे गड़े,
जब चले कांधो पे, पीछे... फूल थे पड़े.
.
काम तो छोटे ही आये.. वक़्त जब पडा,
लिस्ट में कितने अगरचे नाम थे बड़े. 
.
एक है अल्लाह ये कह कर गये रसूल,
हमने उस के नाम पर भी कर लिए धड़े.

झाड़ियाँ जो झुक गयी, तूफ़ान सह गयीं,
जड़ से थे उखड़े पड़े जो, तन के थे खड़े.
.
ज़िन्दगी के बाद कासा, ताज बन गया,
कुछ नगीने जिस में थे ईमान के जड़े.
.
हैं बड़ा तेरा ख़ुदा या रब मेरा बड़ा,
“नूर” इस बचकानेपन से कौन अब लडे?
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 968

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 1, 2016 at 8:07am
शुक्रिया नरेंद्र सिंह जी
Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 1, 2016 at 8:07am
शुक्रिया नरेंद्र सिंह जी
Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 1, 2016 at 8:06am
शुक्रिया दिनेश जी
Comment by narendrasinh chauhan on May 30, 2016 at 7:39pm

लाजवाब रचना 

Comment by दिनेश कुमार on May 30, 2016 at 5:54pm
बेहतरीन मतला वाह।
वाह वाह हर शेर पर वाह। ज़िंदाबाद सर। बेहतरीन अशआरों से सजी ग़ज़ल। वाह

बस मैं गुनगुना नहीं पाया। बह्र मेरे लिए नई थी आदरणीय।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 30, 2016 at 9:18am

शुक्रिया आ पवन जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 30, 2016 at 9:17am

शुक्रिया आ. गिरिराज  जी 

Comment by डॉ पवन मिश्र on May 29, 2016 at 11:32pm
वाह नूर साहब वाह। क्या खूब ग़ज़ल कही है। बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 29, 2016 at 9:16pm

आदरनीय नीलेश भाई , अच्छी गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ आपको , पर इसमे नूर जैसा नूर नही है , वसे सभी उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं , फिर भी ।

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