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खो गया है अक्स असली ढूँढता है आईना।
होंठ पर मुस्कान नकली देखता है आईना।।
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इक कहानी है लिखी जो रूप के इस पृष्ठ पर।
किसका हस्ताक्षर जटिल है पूछता है आईना।।
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हाथ की सारी लकीरें जल गयीं तन्दूर में।
क्या पढ़ें किस्मत का लेखा सोचता है आईना।।
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बालपन से ढ़ो रहा वो ईंट सर पर पूज्यवर।
भूख से संघर्ष का कल बाँचता है आईना।।
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मर रहा था अस्थि का ढाँचा जिलानें के लिये।
बिक गयी माता के दुख को भाँपता है आईना।।
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वात अनुकूलित भवन में नीति निर्माताओं से।
स्वेद टपकाता श्रमिक बन बोलता है आईना।।
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जिस्म से जिसके ये सनई ब्रांड ख़ुश्बू फैलती।
नींव वो ही सभ्यता की खोजता है आईना।।
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जिस जगह तुम रौब अपना झाड़ कर आये अभी।
आम है पर प्राण है सच जानता है आईना।।
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मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय पंकज भाई , बहुत खूब ! ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद स्वीकार करें ।
हाथ की सारी लकीरें जल गयीं तन्दूर में।
क्या पढ़ें किस्मत का लेखा सोचता है आईना।।
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बालपन से ढ़ो रहा वो ईंट सर पर पूज्यवर।
भूख से संघर्ष का कल बाँचता है आईना।।
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मर रहा था अस्थि का ढाँचा जिलानें के लिये।
बिक गयी माता के दुख को भाँपता है आईना।।
बहुत खूब आदरणीय पंकज जी |
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