For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फूल जंगल में खिले किन के लिए (तरही ग़ज़ल 'राज ')

२१२२  २१२२  २१२

ढाल बन अकड़ा रहा जिनके लिए

जगमगाये दीप कुछ दिन के लिए

 

घोंसला भी साथ उनके उड़ गया

रह गया वो हाथ में तिनके लिए

 

फूल को तो ले गई पछुआ  हवा  

रह गई बस डाल मालिन के लिए

 

फूल चुनकर बांटता उनको रहा

खुद कि खातिर ख़ार गिन गिन के लिए

 

क्या मिला उसको बता ऐ जिन्दगी

सोचकर उनके लिए इनके लिए

 

अपने आंगन में खिले अपने नहीं

फूल जंगल में खिले किन के लिए

 

पत्थरों के शह्र में पत्थर सभी     

हैं कहाँ जज्बात मोहसिन के लिए

 

रू परिंदा एक  दिन उड़ जायेगी  

बस कफ़स में कैद पल छिन के लिए 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 849

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 7, 2016 at 8:29pm

आ० नरेन्द्र सिंह जी, ग़ज़ल पर शिरकत और दाद के लिए तहे दिल से आभार| 

Comment by narendrasinh chauhan on June 7, 2016 at 7:19pm

लाजवाब रचना 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 7, 2016 at 4:46pm

आ० उस्मानी साहेब आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से शुक्रिया | तबियत नासाज़ होने की वजह से मुशायरे में इस बार शिरकत नहीं कर पाई थी जब की ग़ज़ल बहुत पहले लिख चुकी थी सोच रही थी क्या अब पोस्ट करना सही होगा सो पोस्ट कर दी और आ० योगराज जी ने अप्रूव कर दी तो देखकर बहुत ख़ुशी हुई उनका भी दिल से आभार |

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 7, 2016 at 4:22pm
आख़री तीनों बेहतरीन अशआर के साथ बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए तहे दिल से बहुत बहुत मुबारकबाद मोहतरमा राजेश कुमारी साहिबा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service