२१२२ २१२२ २१२
ढाल बन अकड़ा रहा जिनके लिए
जगमगाये दीप कुछ दिन के लिए
घोंसला भी साथ उनके उड़ गया
रह गया वो हाथ में तिनके लिए
फूल को तो ले गई पछुआ हवा
रह गई बस डाल मालिन के लिए
फूल चुनकर बांटता उनको रहा
खुद कि खातिर ख़ार गिन गिन के लिए
क्या मिला उसको बता ऐ जिन्दगी
सोचकर उनके लिए इनके लिए
अपने आंगन में खिले अपने नहीं
फूल जंगल में खिले किन के लिए
पत्थरों के शह्र में पत्थर सभी
हैं कहाँ जज्बात मोहसिन के लिए
रू परिंदा एक दिन उड़ जायेगी
बस कफ़स में कैद पल छिन के लिए
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ० नरेन्द्र सिंह जी, ग़ज़ल पर शिरकत और दाद के लिए तहे दिल से आभार|
लाजवाब रचना
आ० उस्मानी साहेब आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से शुक्रिया | तबियत नासाज़ होने की वजह से मुशायरे में इस बार शिरकत नहीं कर पाई थी जब की ग़ज़ल बहुत पहले लिख चुकी थी सोच रही थी क्या अब पोस्ट करना सही होगा सो पोस्ट कर दी और आ० योगराज जी ने अप्रूव कर दी तो देखकर बहुत ख़ुशी हुई उनका भी दिल से आभार |
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