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ग़ज़ल - चाकू पिस्टल ही समझाओ, अच्छा है - गिरिराज भंडारी

22 22  22  22  22  2

तुम केवल परिभाषा जानो ,अच्छा है

और अमल सब हमसे चाहो, अच्छा है

 

देव सभी हो जायें तो , मुश्किल होगी

पाठ लुटेरों का भी रक्खो , अच्छा है

 

पत्थर जब जग जाते हैं, श्री चरणों से

इंसा छोड़ो , उन्हें जगाओ, अच्छा है

 

समदर्शी होता है ऊपर वाला, पर

छोड़ो भी , तुम काटो- छाँटो, अच्छा है

 

सूरज ,चाँद, सितारे, दुनिया को छोड़ो

चाकू पिस्टल ही समझाओ, अच्छा है

 

धड़ सारा कालिख में है यूँ रंगा हुआ

कोशिश कर के, पूँछ बचा लो, अच्छा है

 

प्रजातंत्र  है , अपने पापों से बचने

तुम सियार की टोली पालो, अच्छा है

 

सूरज फूँको से कब बुझता है, फिर भी

सभी निशाचर फूँके मारो , अच्छा है

 

ओम, विरोधों में पड़ता है, पड़ जाये

ट्वींकल ट्वींकल तुम भी गाओ, अच्छा है

**************************************
गिरिराज भंडारी

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Comment by rajesh kumari on June 8, 2016 at 1:34pm

वाह वाह बहुत शानदार कटाक्ष कुछ अलग ही अंदाज़ में कही इस ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई लीजिये आ० गिरिराज जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2016 at 12:07pm

आदरणीय शेख शहज़ाद भाई , सुखन नवाज़ी और हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 8, 2016 at 11:36am
आपका गहन समसामयिक चिंतन है या मौजूदा हालात पर आक्रोश, सभी सटीक अशआर बयां बख़ूबी कर रहे हैं। तहे दिल से बहुत बहुत मुबारकबाद मोहतरम जनाब गिरिराज भंडारी साहब।
Comment by Ravi Shukla on June 8, 2016 at 10:51am

आदरणीय गिरिराज जी बढि़या संकेतो से बात कह गये है आप इस ग़ज़ल में  बहुत बहुत बधाई आपको इसके लिये 

पत्थर जब जग जाते हैं, श्री चरणों से

इंसा छोड़ो , उन्हें जगाओ, अच्छा है ......सन्‍दर्भ के साथ अच्‍छी बात कही है आपने बधााई 

प्रजातंत्र  है , अपने पापों से बचने  इसे अगर एसे पढें तो क्‍या आपका भाव परिवर्तित होगा क्‍या 

प्रजातंत्र में पापों से बचना है तो /// प्रजातंत्र में खुद पापो से बचने को 

ओम, विरोधों पड़ता है, पड़ जाये इसमें शायद एक फा  (2) कम रह गया है 

ओम विरोधी सुर में क्‍या जड होगा पर... ऐसे भी हमें कहने में आया पर कहन की स्‍वतंत्रता आपकी बाधित नहीं होनी चाहिये । सादर 

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