22 22 22 22 22 2
तुम केवल परिभाषा जानो ,अच्छा है
और अमल सब हमसे चाहो, अच्छा है
देव सभी हो जायें तो , मुश्किल होगी
पाठ लुटेरों का भी रक्खो , अच्छा है
पत्थर जब जग जाते हैं, श्री चरणों से
इंसा छोड़ो , उन्हें जगाओ, अच्छा है
समदर्शी होता है ऊपर वाला, पर
छोड़ो भी , तुम काटो- छाँटो, अच्छा है
सूरज ,चाँद, सितारे, दुनिया को छोड़ो
चाकू पिस्टल ही समझाओ, अच्छा है
धड़ सारा कालिख में है यूँ रंगा हुआ
कोशिश कर के, पूँछ बचा लो, अच्छा है
प्रजातंत्र है , अपने पापों से बचने
तुम सियार की टोली पालो, अच्छा है
सूरज फूँको से कब बुझता है, फिर भी
सभी निशाचर फूँके मारो , अच्छा है
ओम, विरोधों में पड़ता है, पड़ जाये
ट्वींकल ट्वींकल तुम भी गाओ, अच्छा है
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गिरिराज भंडारी
Comment
वाह वाह बहुत शानदार कटाक्ष कुछ अलग ही अंदाज़ में कही इस ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई लीजिये आ० गिरिराज जी |
आदरणीय शेख शहज़ाद भाई , सुखन नवाज़ी और हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ।
आदरणीय गिरिराज जी बढि़या संकेतो से बात कह गये है आप इस ग़ज़ल में बहुत बहुत बधाई आपको इसके लिये
पत्थर जब जग जाते हैं, श्री चरणों से
इंसा छोड़ो , उन्हें जगाओ, अच्छा है ......सन्दर्भ के साथ अच्छी बात कही है आपने बधााई
प्रजातंत्र है , अपने पापों से बचने इसे अगर एसे पढें तो क्या आपका भाव परिवर्तित होगा क्या
प्रजातंत्र में पापों से बचना है तो /// प्रजातंत्र में खुद पापो से बचने को
ओम, विरोधों पड़ता है, पड़ जाये इसमें शायद एक फा (2) कम रह गया है
ओम विरोधी सुर में क्या जड होगा पर... ऐसे भी हमें कहने में आया पर कहन की स्वतंत्रता आपकी बाधित नहीं होनी चाहिये । सादर
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