(१) दुर्मिल सवैया ....करुणाकर राम
करुणाकर राम प्रणाम तुम्हें, तुम दिव्य प्रभाकर के अरूणा.
अरुणाचल प्रज्ञ विदेह गुणी, शिव विष्णु सुरेश तुम्हीं वरुणा.
वरुणा क्षर - अक्षर प्राण लिये, चुनती शुभ कुम्भ अमी तरुणा.
तरुणा नद सिंधु मही दुखिया, प्रभु राम कृपालु करो करुणा.
(२) किरीट सवैया ...अनुप्राणित वृक्ष
कल्प अकल्प विकल्प कहे तरु, पल्लव एक विशेष सहायक.
तुष्ट करें वन-बाग नमी -जल विंदु समस्त विशेष विधायक.
वायु धरा नभ अग्नि परा, परमाणु अशेष विशेष विनायक.
ब्रह्म अगोचर शक्ति लिये, अनुप्राणित वृक्ष विशेष प्रदायक.
मौलिक व अप्रकाशित
रचनाकार....केवल प्रसाद सत्यम
Comment
आ० रामबली भाई जी, प्रणाम! आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार. सादर
आ० रक्ताले भाई जी, सादर प्रणाम! आपका रचना पर उत्साहवर्धन हेतु तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार.
आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर, दोनों ही सवैया छंद बहुत सुंदर और मनमोहक रचे हैं आपने. दुर्मिल में सिंहावलोकन का प्रयोग भी बहुत सुंदर. है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.
आ० राजेश दी जी, सादर प्रणाम! उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार.
आ० सौरभ सर जी, प्रणाम! आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार. जी आपने सही कहा ....कभी-कभी भ्रम हो जाता है...ऐसा इसलिये भी होता है, जब हम शब्दों के मोह में फंस जाते हैं....जी, अब सही शब्द आ गया . सादर
दोनों छंद मुग्ध कारी हुए है बहुत ही सुन्दर आपको ढेरों बधाई आ० केवल प्रसाद जी
बहुत ही सधा हुआ प्रयास हुआ है, भाई केवल प्रसाद जी.
आपकी पहली प्रस्तुति सामान्य दुर्मिल सवैया न हो कर ’सांगोपांग दुर्मिल सवैया’ का सुन्दर उदाहरण है. इस विशिष्ट प्रयास केलिए हार्दिक शुभकामनाएँ
दूसरी प्रस्तुति में प्रत्येक को जगणात्मक शब्द के तौर पर प्रयुक्त किया गया है. लेकिन यह तगणात्मक शब्द है. प्रत्+ये+क .. आप देख लीजियेगा.
फिरभी आपका यह प्रयास् अत्यंत गहन है. हार्दिक शुभकामनाएँ
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