आज मौक़ा पाते ही बाबूजी ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा- "देखो छोटे, या तो तुम्हारी पत्नी और तुम हमारी परम्परा के अनुसार चलो, या फिर अपने रहने की कोई और व्यवस्था कर लो!"
"क्यों बाबूजी, आपको हमसे क्या परेशानी होने लगी है?" छोटे ने हैरान हो कर पूछा।
"बेटे, परेशानी मुझे उतनी नहीं, जितनी बड़े को और उसके परिवार को है! उसे बिलकुल पसंद नहीं है घर पर भी फूहड़ पहनावा, बाज़ार का जंक और फास्ट फूड वग़ैरह और तुम्हारी पत्नी की बोलचाल! बच्चों से भी बात-बात पर 'यार' कहना, तू और तेरी कहकर बात करना! बहुत सी बातें हैं, क्या बताऊं मैं तुम्हें!"
"मगर बाबूजी, यह सब तो नये ज़माने का चलन है! आप और भाईसाहब अगर पुराने पिछड़े ख़्यालात के हैं, तो इसमें मेरी पत्नी और मेरा क्या कसूर! अरे, दम तो हम लोगों का घुटता है आप लोगों के बीच रहकर, कहीं हमारे बच्चे भी ऐसे ही न रह जायें!" छोटे ने व्यंगात्मक लहज़े में कहा- "ऐसा करिये बँटवारा करके मेरा हिस्सा मुझे दे दीजिए, मैं अपने परिवार संग कहीं अलग रहने लगूंगा!"
"लेकिन बेटा, यह तो समस्या हल करने का स्वार्थी शॉर्ट कट है! अपनी पत्नी को समझाओ,
मॉडर्न कहलाने के लिए फूहड़पन अपनाना कोई ज़रूरी थोड़े न है! संयुक्त परिवार में तालमेल रखोगे, तो सभी फ़ायदे में रहेंगे, ज़रा समझो!"
"तालमेल आप लोग रखिये पुरानी परम्पराओं से! ज़माना तो शॉर्ट कट का ही है और नई परम्पराओं का!" छोटे ने स्वर कुछ ऊँचा करते हुए कहा- " नये ज़माने के साथ चलने और शार्ट कट्स की ही बदौलत आज मैं और मेरी पत्नी क़ामयाबी के इस मुकाम पर हैं! आप लोग तो हमसे जलते हैं, बस!"
"नये ज़माने के चलन के बेहूदा अंधानुकरण से भला कौन जलेगा?" बाबूजी ने छोटे के कंधे पर हाथ रखकर कहा- "ऐसी तरक़्क़ी और मिथ्या-आधुनिकता के शॉर्ट कट्स ने ही तो तुम लोगों को कुसंस्कृति की भूल-भलैया में फँसा दिया है!"
[मौलिक व अप्रकाशित]
Comment
आदरणीय उस्मानी जी, इस प्रस्तुति पर बधाई. यह भी अवश्य है कि प्रस्तुति में पात्रों के बहाने लेखक स्वयं बोलने लगा है और पात्र वाचाल से होते लग रहे है. सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online