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हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी! बेहतरीन प्रस्तुति!
अदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, या तो आप नितांत भोले हैं, या पाठकों की खिल्ली उड़ाने में आपको कुछ अधिक ही मज़ा आता है. दोनों दशाएँ रचनाकर्म के लिहाज से उचित नहीं. ऐसा ही मैं जानता हूँ. आप यदि कुछ सोच-जान कर बैठे हों तो आपकी समझ से वही उचित है. जहाँ तक इस प्रस्तुति के ’लघुकथा हो जाने’ की सूरत का सवाल है, जो कि आपका महती सवाल है, तो इस विन्दु पर आपकी नज़र में ’लघुकथा जानने वालों’ की प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा करें.
भाई, लगे हाथों मैं यही बता सकता था.
सादर
आपकी किस्साग़ोई ! वाह वाह वाह ! मुग्ध कर दिया आपने आदरणीय.. हृदयतल से शुभकामनाएँ.
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