आक्रोश – (लघुकथा) –
" रूपा, तू यहाँ, रात के दो बजे! आज तो तेरी सुहागरात थी ना"!
"सही कह रही हो मौसी, आज हमारी सुहागरात थी! तुम्हारी सहेली के उस लंपट छोरे के साथ जिसे तुम बहुत सीधा बता रहीं थी! बोल रहीं थीं कि उसके मुंह में तो जुबान ही नहीं है"!
"क्या हुआ, इतनी उखडी हुई क्यों है"!
"उसी से पूछ लो ना फोन करके, अपनी सहेली के बिना जुबान के छोरे से"!
"अरे बेटी, तू भी तो कुछ बोल! तू तो मेरी सगी स्वर्गवासी बहिन की इकलौती निशानी है"!
"तभी तो तुमने उस नीच के साथ रिश्ता करा दिया"!
"अरे पर अब कुछ बता भी कि हुआ क्या"!
"मुझसे कहता है कि सुहाग रात तभी होगी जब तू मुझे सच सच बतायेगी कि अब तक कितने लोगों के साथ सुहागरात मना चुकी है"!
"हाय राम, ऐसा बोला बदमाश, देखने में तो कितना सीधा लगता है! फ़िर तूने क्या कहा"!
"मैंने भी साफ बोल दिया कि पहले तू अपनी रंग रेलियों की दास्तान सुना, तो बोलता है तेरी इतनी हिम्मत"!
"फिर क्या हुआ मेरी बच्ची"!
"फिर बोला कि सुहागरात में अगर चादर में खून का दाग नहीं लगा तो लात मार कर भगा दूंगा"!
"उसकी ये मज़ाल ! फिर तूने क्या कहा"!
"मौसी अपना तो भेजा घूम गया!उसके पिछवाड़े में दी कस कर एक लात! वो गिरा औंधे मुंह पलंग के नीचे और रूपा फ़रार"!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी!
मुझी आपकी ये कथा बहुत पसंद आई है आदरणीय तेजवीर जी . इस लेखन के लिए जिगर की जरुरत थी . एक स्त्री के हाथों ये लिखा जाता तो जाने कितनी मर्यादाओं और नैतिक मूल्यों को तोड़ने की दुहाई दी जाती लेकिन इस तरह की कथा का पुरुष के द्वारा लिखा जाना ,मुझे हमारे मैथिलीशरण गुप्त जी हठात याद आ गए की स्वयं पुरुष होने के बावजूद भी सदा स्त्री पक्ष को मजबूत बना कर पुरुष प्रवृत्ति पर प्रहार किये थे . ह्रदय से बधाई आपको प्रेषित करती हूँ . सादर
हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी! आपको लघुकथा अच्छी लगी! आपने बेहतरीन सारगर्भित व्याख्या की! उसके लिये पुनः आभार!गोष्ठी आयोजन के लिये और दूसरी लघुकथा तैयार करूंगा!
आ० तेजवीर सिंह जी ,विषय से न्याय करती हुई लघु कथा है एक दम से अलग कथानक किन्तु सच्चाई है लघु कथा में आज भी इस मिथ्या धारणा के कारण कई रिश्ते टूट जाते हैं या जिन्दगी भर ढोए आते हैं मेडिकल साईंस के तत्थ्य को पढेलिखे लोग तो स्वीकारते हैं किन्तु अनपढ़ या गाँव में रहने वाले अभी तक इसी धारणा पर टिके हैं इसको वर्जिनिटी का सिम्बल मानते हैं जो हमेशा सही नहीं होता |लघु कथा में आज की स्वाभिमानी लड़की का चित्रण बहुत शानदार लगा | शानदार लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई |आयोजन से पहले ब्लॉग पर क्यूँ पोस्ट की है आपने क्या उस वक़्त नेट पर नहीं रहोगे ?
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