*महाभुजंगप्रयात सवैया*
करूं अर्चना-वंदना मैं तुम्हारी, महावीर हे ! शूर रुद्रावतारी!
कृपा-दृष्टि डालो दया दान दे दो, बढ़े बुद्धि-विद्या बनूं सद्विचारी।।
हरो दीनता-दुःख-दुर्भाग्य सारे, तुम्हीं नाथ हे! लाल-सिंदूरधारी!
सदा हाथ आशीष का शीश पे हो, यही प्रार्थना हे! महाब्रह्मचारी।।
*कुण्डलिया छंद*
मृग-से सुंदर नैन हैं, ओष्ठ-अरुण-अंगार।
यौवन के हर पोर से, फूटे मधु की धार।
फूटे मधु की धार, तार उर के झंकृत कर।
काले-कुंचित केश, झूमते अहि से कटि पर।।
अधरों पर मुसकान और शर बरसें दृग से।
सिरजाएँ हिय-नेह, चक्षु ये चंचल मृग-से।।
रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
भाई रामबलीजी, आपका सवैया छन्द पर हुआ अभ्यास संतुष्ट कररहा है. सर्वोपरि, मेरे निवेदन को आपकी इस प्रस्तुति से मान मिला है. आपने इस छन्द को खड़ी बोली में न केवल निभाया है, बल्कि निर्वहन आश्वस्तिकारक है. आपको इसका भान हो रहा होगा कि खड़ी भाषा में तदनुरूप शब्दों के सहयोग से सवैया छन्द लिखना तनिक अधिक अभ्यास मांगता है. आपकी इस प्रस्तुति को आदरणीय गोपाल नारायण जी ने क्यों सायास कर्म कहा मुझे नहीं पता, किन्तु आपका यह प्रयास सतत बना रहे.
आपके इस सार्थक प्रयास को मैं अपनी दो सवैया रचनाओं से मान देना चाहूँगा, ताकि आपका खड़ी बोली में छन्द रचनाकर्म मुखर आधार पा सके.
सदा ही अकर्मों, विकर्मों, विचारों, यथावादिता के स्तरों को बताता
दिखा है सदा न्यायप्रेमी तराजू, ’कभी द्वंद्व पालो न धारो’ पढ़ाता
मनोभावना या मनोवृत्तियों की दशा के सभी पक्ष सापेक्ष लाता
दिखा संयमी भावना की प्रभा को सदा मान देता, सदा ही बढ़ाता
कई बार संभाव्य में ही जुटा है, कई बार सच्चाइयों को जुटाता
कभी ये स्वयं ही नमूना बना तो, कई बार ये मानकों को बनाता
बँधी आँख पट्टी खड़ी जो इसे ले, उसी मूर्ति को न्याय-देवी बताता
तराजू न सोचे किसे ’क्या’ मिला है, बिना मोह दायित्व सारे निभाता
कुण्डलिया छन्द की रचना शृंगारिक है. इस पर अधिक क्या कहूँ, पुराने छन्दशास्त्रियों की रचनाएँ घूम जा रही हैं.
हार्दिक बधाइयाँ व शुभकामनाएँ
-आआ० राम बली जी . आपके सवैये में आयास अधिक है सहजता कम है शिल्प को साधने की जी तोड़ कोशिश दिखती है . मगर कुण्डलिया में आप पूरी तरह से छा गए है . ऐसी मनहर कुण्डलिया मैंने पहले नहीं पढी .यह कुण्डलिया अपने आप में एक काव्य है . मैं इस रचना पर आपको ह्रदय से बधायी देता हूँ . ------- बरसें /सिरजाएँ में बरसे /सिरजाये ही पर्याप्त है . सादर आ०० बली जी .
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