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आदरणीय रामबली गुप्ता जी सादर, मेरा इशारा स्थायी की तरफ था. जिसे आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहब ने और स्पष्ट किया है. सादर.
आदरणीय राम बली भाई , जीने का जोश भरते आपके गीत के लिये हार्दिक बधाई । बाक़ी शिल्प पर आ. गोपाल जी ने कह ही दिया है ।
aअ० राम बली जी , सुन्दर् रचना -------------------------------
यदि प्रारम्भ हैं -ऐ! राही! आगे बढ़ता जा।------ तो ---ऐ! राही! पथ पर.......कैसे ?
संघर्षों से तूँ ना डरना।
पथ पर पग पीछे ना धरना।।-------- 'ना' शब्द के प्रयोग से बचें 'न'' सही है . आवश्यकता पड़ने पर 'ना '' को 'मत' किया जा सकता है .
पथिक सत्य के पथ का तूँ है
संघर्षों से तूँ ना डरना।------------------------तूँ नहीं तू सही होगा . शुभ-शुभ आदरणीय . .
आदरणीय रामबली गुप्ता जी सादर, सुंदर गीत रचा है किन्तु प्रथम पंक्ति कुछ और है जबकि आपने हर अंतरे के पश्चात कुछ और ली है. अंतिम अंतरे की यह पंक्ति भी एक बार जांच लें "विजय पराजय बहुत मिलेंगे" ......मिलेंगे या मिलेंगी देख लें. सादर.
आदरणीय राम बली जी सुन्दर और प्रेरक गीत के लिये हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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