फ़ैलुन,फ़ैलुन,फ़ैलुन,फ़ैलुन,फ़ैलुन,फ़ा
.
इक तरफा यारी यार निभाऊँ क्यूँ कर ।।
फोकट में डेली चाय पिलाऊँ क्यूँ कर ।।(1)
रोज सुबह तू दूध जलेबी ठसक रहा,
ऊपर से नामी ग़ज़ल सुनाऊँ क्यूँ कर ।।(2)
बन हीरो भटक रहा खुर्राट निठल्ला,
तेरा खरचा अब और चलाऊँ क्यूँ कर ।।(3)
बनिया भी अपना पैसा माँग रहा है,
तेरी खातिर मैं नाक छुपाऊँ क्यूँ कर ।।(4)
सारे लफड़े-झगड़े तू देख सलट खुद,
तेरे लफड़ों में टाँग अड़ाऊँ क्यूँ कर ।।(5)
उस लड़की के चक्कर में मर जायेगा,
तेरी खातिर मैं भी मर जाऊँ क्यूँ कर ।।(6)
आम चुरा कर लाया फिर सबनें खाये,
गुठली के इतनें दाम चुकाऊँ क्यूँ कर ।।(7)
अपनी हालत पंक्चर है कब समझेगा,
तुझसे मैं सारे 'राज़' छुपाऊँ क्यूँ कर ।।(8)
कवि- "राज बुन्दॆली"
30/06/2016
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीया,,,,राज कुमारी,,जी,,,आभार नमन,,,बिल्कुल,,सही सुज्हाव दिया आपने सहर्ष स्वीकार है,,, मूल प्रति में सुधार कर लिया है मैने,,,,,धन्यवाद,,,,,
वाह वाह आद० राज बुन्देली जी हास्य रस का खूब आनंद आया |सभी अशआर मजेदार हैं तहे दिल से बधाई लीजिये
ऊपर से नामी ग़ज़ल सुनाऊँ क्यूँ कर---इसकी बह्र जांच लें---- नामी नज्म कर सकते हैं
आदरणीय,,,,सुशील सारना जी आभार,,,,,,
अदरणीय,,,,,गिरिराज भंडारी सर जी आभार,,,,,
आदरणीय,,,,,अशोक कुमार जी बहुत बहुत धन्यवाद सर जी
इक तरफा यारी यार निभाऊँ क्यूँ कर ।।
फोकट में डेली चाय पिलाऊँ क्यूँ कर ।।(1)
रोज सुबह तू दूध जलेबी ठसक रहा,
ऊपर से नामी ग़ज़ल सुनाऊँ क्यूँ कर ।।(2)
वाह अादरणीय बुंदेली जी वाह .... हास्य रस को समाहित करते हुए अापने बड़ी ही उम्दा ग़ज़ल पेश की है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।
आदरनीय राज भाई , बढ़िया हजल कही आपने , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।
आम चुरा कर लाया फिर सबनें खाये,
गुठली के इतनें दाम चुकाऊँ क्यूँ कर........वाह ! बहुत खूब.
आदरणीय राज बुन्देली जी सादर, बहुत खूबसूरत गजल हुई है. दिली दाद कुबूल फरमाएं.सादर.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online