२१२२ २१२२ २१२
मजहबों के बीच जो दीवार है
डालती उस नींव को सरकार है
हाथ में जिसके किताबें चाहिए
आज उसके हाथ में हथियार है
जिन्दगी इक बार मिलती है यहाँ
मर रहा इंसान सौ सौ बार है
ख्वाहिशें बच्चों की पूरी क्या करें
जेब में सहमा हुआ इतवार है
पढ़ नहीं सकता यहाँ इक हर्फ़ जो
बेचता सड़कों पे वो अखबार है
राम रहिमन बिक रहे बाजार में
फल रहा बस धर्म का व्यापार है
नारियाँ महफूज़ बोलो हैं कहाँ
आज सड़कों पर लुटे संसार है
गुम कहाँ जाने हुए वो कहकहे
हर कोई दिखता यहाँ गमख्वार है
बादलों की देख के दादा गिरी
आज सावन भी हुआ बेजार है
दुश्मनी केवल यहाँ इंसान में
जानवर को जानवर से प्यार है
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया आद० श्री सुनील जी
आदरणीय राजेंद्र कुमार जी आपका तहे दिल से आभार
आदरणीय तेजवीर सिंह जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से शुक्रिया .
प्रिय राहिला जी ,आपकी मुखर प्रतिक्रिया ने मेरा उत्साह दुगुना कर दिया आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया |
आद० समर कबीर भाई जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लेखन कर्म सार्थक हो गया तहे दिल से आभार आपका |मूल रचना में ख्वाहिशें कर लिया है सादर आभार |
महेंद्र कुमार जी, उत्साह वर्धन के लिए तहे दिल से आभार आपका |
मनोज कुमार एहसास जी ,ग़ज़ल आपको पसंद आई आपका तहे दिल से आभार |
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