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अक़ल का चश्मा(लघुकथा)राहिला

किसी भी सफ़र की बेहद आम,लेकिन जबरदस्त मानसिक प्रताड़ना वाली हरक़त से सोमी दो चार हो रही थी।उसके बगल में बैठे सज्जन गाहे वाहे हर संभव मौके पर उसे छूने का कोई अवसर हाँथ से नहीं गवां रहे थे।सफर लंबा था और बर्दास्त की हद हो रही थी।लेकिन संकोची स्वभाव आज उसपर भारी पड़ रहा था।ऐसे में अचानक उसकी नज़र मोबाइल पर पड़ी।और पता नहीं क्या सोचकर उसने अपनी सहेली को संदेश लिखना शुरू किया।
"सुन यार!इस समय बस में हूँ।और मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है।"
"क्यों.. क्या हुआ?"
"क्या कहूँ यार!मेरी बगल में एक छिछोरा बैठा है और कमीना बहाने-बहाने से छूने की कोशिश किये जा रहा है।"
"और तू बेवकूफ मुझसे बात करने में समय बरबाद कर रही है।"
"तो तू ही बता क्या करूँ?मुझे तो कुछ नहीं सूझ रहा।"
"उतार जूता और दे साले के मुँह में।"
"लेकिन इससे तो व्यर्थ का हंगामा होगा।"
"इसी सोच का फायदा उठा रहा है वो!कुछ नहीं होगा।तू बस हिम्मत से काम ले।तू तो मुश्किल से दो ,चार ही मार पायेगी, बाकी कसर तो उस बस में बैठे यात्री पूरी कर देंगें।"
"ठीक है, उतारती हूँ ।"कह,उसने झुककर जूता उतारा।"थोड़ी देर बाद-
"टिंग"संदेश आया ।
"बता अब क्या स्थिति है?फिर दी उसने कोई हरक़त?"
"नहीं..,नहीं दी और शायद अब देगा भी नहीं।"
"क्यों ?वो उतर गया क्या?"
"नहीं,यहीं बैठा है सिकुड़ कर। बस काले चश्मे की जगह, नज़र का चश्मा लगा है।"
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on July 14, 2016 at 3:05pm
आपने शायद बात पूरी तरह समझी नहीं,जनाब विजय शंकर जी की प्रतिक्रया एक बार और पढ़ने का कष्ट करें ।
Comment by Sushil Sarna on July 14, 2016 at 2:38pm

वर्तमान हालात को दर्शाती इस हकीकी लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया राहिला जी। 

Comment by Rahila on July 14, 2016 at 1:17pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय कबीर साहब!आपने रचना को सराहा ।लेकिन दब्बू और संकोची स्वभाव की लड़कियां अगर बोल पाती तो ये नौबत ही नही आती ।सादर
Comment by Samar kabeer on July 14, 2016 at 12:32pm
मोहतरमा राहिला जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई,बधाई स्वीकार करें ।
में आली जनाब डॉ.विजय शंकर जी की बात से सहमत हूँ ।
Comment by Rahila on July 14, 2016 at 10:59am
आदरणीय सर जी! त्वरित प्रतिक्रिया के लिए बहुत, बहुत शुक्रिया ।वैसे ऑनलाइन व्यक्ति स्क्रीन पर दिख जाता है।फ़ोन पर बोल कर बताने की हिम्मत हर कोई नहीं कर पाता।आपको रचना पर उपस्थित देखकर बहुत प्रसन्नता हुयी ।सादर प्रणाम
Comment by Dr. Vijai Shanker on July 14, 2016 at 10:34am
अनुकरणीय , बधाई , आदरणीय सुश्री राहिला जी , सादर।
नोट - वैसे अगर मेसेज करने की सुविधा न हो तो यही बात बोल कर भी की जा सकती है , प्रभावी होगी , जरूरी नहीं कि दूसरी तरफ कोई सुनने वाला हो ही।

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