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गदहा अन्दर हो जाये, तैयारी है
धोबी का रिश्ता लगता सरकारी है
वो बयान से खुद साबित कर देते हैं
जहनों में जो छिपा रखी बीमारी है
बात धर्म की आ जाये तो क्या बोलें ?
समझो भाई ! उनकी भी लाचारी है
बम बन्दूकें बहुत छिपा के रक्खे हैं
अभी फटा जो, वो केवल त्यौहारी है
सरहद कब आड़े आयी है रिश्तों में
हमसे क्यूँ पूछो, क्यूँ उनसे यारी है ?
कभी फटा था धरती का सीना लेकिन
खूँ रिसना अब तक सीने से जारी है
तू जाने तेरी किताब की परिभाषा
मेरी किताब में लिक्खा है, गद्दारी है
अपनी माँ को माँ कहने की चाहत भी
मक्कारों को लगती है , मक्कारी है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय आशुतोष भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया ।
आदरणीय गिरिराज भाई साब ..आपकी इस क्रन्तिकारी रचना के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें .
आदरणीय विजय भाई , गज़ल की सराहना और विचारों से सहमति के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।
आदरणीया राजेश जी , ग़ज़ल की सराहना और सभी अशआर पसंद करने के लिये आपका हृदय से आभार ।
आदरनीय समर भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।
आदरणीय , गदहा , गधा , और खर ये सभी सहीं है , हिन्दी डिक्सनरी के हिसाब से । शेर का अर्थ सीधे पहुँचे इसलिये गदहा लिया , वैसे -- खर को अन्दर करने की तैयारी है - मै कह सकता था । आगे आप सलाह दें ।
आदरणीय सुशील भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका । दो शे र पसंद करने के लिये आपका अलग से आभार ।
आदरणीय अशोक भाई , गज़ल की सराहना और एक शे र पसंद करने के लिये आपका हृदय्से आभारी हूँ ।
बहुत बढ़िया वाह्ह्ह वाह सही कटाक्ष ...
सभी शेर पसंद आये दिल से बधाई आपको आद० गिरिराज जी
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