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जब छीनने छुडाने के साधन नए मिले
हर मोड़ पर कई-कई सज्जन नए मिले
कुछ दूर तक गई भी न थी राह मुड़ गई
जिस राह पर फूलों भरे गुलशन नए मिले
काँटों से खेलता रहा कैसा जुनून था
उफ़! दोस्तों की शक्ल में दुश्मन नए मिले
जितने भी काटता गया जीवन के फंद वो
उतने ही जिंदगी उसे बंधन नए मिले
अपनों से दूर कर न दे उनका मिज़ाज भी
गलियों से अब जो गाँव की आँगन नए मिले
मौलिक/अप्रकाशित.
Comment
उत्साहवर्धन के लिए दिल से आभार आदरणीय राम शर्मा जी. सादर.
उत्साहवर्धन के लिए दिल से आभार आदरणीय डॉ. विजय शंकर साहब. सादर.
सादर आभार आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी.
आदरणीय डॉक्टर साहब सादर आपसे गजल पर तारीफ़ पाना हौसला दे रहा है. बहुत-बहुत आभार आदरणीय डॉ. सुर्याबाली 'सूरज' साहब. सादर.
अशोक भाई बेहतरीन कलाम से नवाजा है मंच को आपने
खास कर ये शेर तो ग़ज़ब का हुआ है
काँटों से खेलता रहा कैसा जुनून था
उफ़! दोस्तों की शक्ल में दुश्मन नए मिले
दाद कुबूल करें
आदरणीय अशोक भाईजी, मुझ नाचीज़ को अपनी औकात में ही रहने दें.
हम आपस में मिलजुल कर तिल-तिल लगातार अध्ययन करते जा रहे हैं ! यही अपना संबल है. बाकी की क्या बातें करनी ?
आपको भी आदरणीय, गुरु पूर्णिमा की सादर शुभकामनाएँ
सर्वप्रथम गुरु पूर्णिमा पर गुरुवर को सादर प्रणाम. प्रस्तुत गजल को सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी.सतत प्रयास से अब आपकी , आदरणीय समर कबीर साहब की प्रतिक्रियाओं से कुछ आस बँधी है. सादर.
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