१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
दिलों में दूर रहकर भी कोई दूरी नहीं होती |
कहाँ किसको कोई पूछे यहाँ तो नाम बिकता है
किसी मजदूर के फन की कोई गिनती नहीं होती
मिटाते हैं उसे जालिम नहीं क्या जानते इतना |
बुरी हमको अगर लगती लगेगी उसको भी देखो |
सदाक़त से भरे वो लफ्ज़ वो अशआर फिक्रो फन |
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नहीं डरता यहाँ इंसान ये भगवान से भी फिर
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Comment
आद० गिरिराज जी आपका बहुत बहुत आभार |
आद० अशोक कुमार रक्ताले जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ तहे दिल से आभार आपका |
आद० महेंद्र कुमार जी बहुत बहुत शुक्रिया |
आद० डॉ० आशुतोष जी ,ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया |
प्रिय प्रतिभा जी ,ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया |
आद० समर भाई जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ |हाँ नेट की समस्या के चलते प्रतुत्तर देने में देरी का खेद है
आदरणीया राजेश जी , अच्छी गज़ल कही आपने , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।
नहीं डरता यहाँ इंसान ये भगवान से भी फिर
अगर ये देह माटी की यहाँ माटी नहीं होती..............वाह ! वाह ! सही कहा है.
आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर, बहुत खूबसूरत गजल हुई है.सादर बधाई स्वीकारें.
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