महालक्ष्मी छंद
घूस से जो खड़ा हो गया
क्या सभी से बड़ा हो गया?
आग में जो तपा झूठ की
एक थोथा घड़ा हो गया
ज्ञान वाला यहाँ हारता
मूर्ख बाजी यहाँ मारता
मार देता वही साँच को
झूठ का वेष जो धारता
आज का हाल क्या हो रहा
क्यूँ युवा देश का खो रहा
सूखती पौध आशा भरी
मूल में क्या नशा बो रहा
सोचता है युवा क्यूँ पढूँ
है कहाँ राह आगे बढूँ
हो न पूरे यहाँ जो कभी
ख़्वाब मैं वो यहाँ क्यूँ गढ़ूँ
सो रहे वो जगाना तुझे
मार्ग सीधा दिखाना तुझे
थाम तू लेखनी को अभी
पीढ़ियों को सिखाना तुझे
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० रामबली जी ,आपको छंद पसंद आया आपका दिल से प्रभूत आभार |
आद० समर भाई जी ,आपको छंद अच्छा लगा इस होंसलाफ्जाई के लिए दिल से आभार |
आद० सुशील सरना जी,आपको ये छंद पसंद आया आपको दिल से बहुत- बहुत आभार|
आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, तुकांतता पर आपके द्वारा, सदैव लाभकारी, अच्छी जानकारी दी गई है.सादर आभार.
सो रहे वो जगाना तुझे
मार्ग सीधा दिखाना तुझे
थाम तू लेखनी को अभी
पीढ़ियों को सिखाना तुझे
शानदार के अतिरिक्त कुछ और नहीं बनता आदरणीया राजेश कुमारी जी ... इस मनमोहक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
तुकान्तता को लेकर कृपया कोई भ्रम न बने.
कई छन्द जो समान आवृति में दो भागों में विभक्त होते हैं, उनमें दो तरह से तुकान्तता के निर्वाह का चलन है. एक, पदान्त की तुकान्तता और दूसरे, चरणान्त की तुकान्तता. जैसे कि उल्लाला छन्द में कई छन्दकार चरणान्त की तुकान्तता का निर्वहन करते हैं, तो कई विद्वान पदान्त की तुकान्तता का निर्वहन करते है.
सादर
आद० अशोक रक्ताले जी ,छंद पर आपकी बधाई का हार्दिक स्वागत |आपने सही कहा चरण तुकांत होना चाहिए
मैंने छंद चरण मुक्तक लिखे हैं दूसरी बात चरण अलग अलग लिखे हैं यदि आपकी तरह लिखूँ तो
घूस से जो खड़ा हो गया, क्या सभी से बड़ा हो गया?
यदि द्वीपदी लिखती तो इसी तरह लिखती ..सादर ,
आपकी तुकांतता एक दम सही है
प्रस्तुति पर आपकी उपस्थिति और सराहना दोनों के लिए हार्दिक रूप से आभारी हूँ आद० सौरभ पाण्डेय जी |
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