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कीमत ए बेपरवाही (लघुकथा)/सतविन्द्र कुमार

कीमत ए बेपरवाही
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हंसी ख़ुशी जीवन बीत रहा था।वे दोनों और उनका पांच साल का बच्चा,जो उनकी ख़ुशी का सबसे बड़ा कारण था और ज़रिया भी।
आज जब वह कपड़े धोने के बाद कमरे में गई तो बच्चे को फर्श पर अचेत हाल में देखते ही उसके पैरों तले जमीन खिसक गई।उसे तो उसने टीवी पर कार्टून देखते हुए छोड़ा था।
पर क्या हुआ? न कोई आवाज ,न कोई हलचल।मुँह में झाग और शरीर नीला।शायद कोई दौरा था।
शंकित मन से पति को फोन मिलाया,"सुनिए....चीनू को पता नहीं ...क्या हुआ है?वो....कुछ बोल्ल्ल...?"
बोलते-बोलते बिलख पड़ी।
"देखो तुमम् चिंता न करो।उसे रिक्शा से ,डॉ के पास ले जाने के लिए निकलो।मैं भी पहुँचता हूँ।",हौंसला देने का बहाना करता हुआ खुद को भी सम्भाल रहा था।
जल्दी से वह भी पहुँच गया।डॉ को दिखाने से पहले ही बच्चा अंतिम सांस ले चुका था।देखते ही डॉ ने उसकी मृत्यु की पुष्टि कर दी।डॉ के अनुसार लक्षण शरीर में जहर के होने के थे।
डॉ बोला,"शायद किसी जहरीले कीड़े ने काट लिया है।"

उनकी खुशियों को ग्रहण लग गया।वह बुझी-बुझी रहने लगी।
टीवी ट्रॉली को झाड़ते हुए अचानक उसका हाथ एक चॉकलेट के पैकेट जैसी गत्ते की डिब्बी पर पड़ा।जिस पर लिखा था बच्चों की पहुँच से दूर रखें।उस पर छपे चित्र को देखते ही वह सिहर उठी।
उसका हृदय चित्कार उठा और आँखों से मलाली पानी की धार फूट पड़ी।

मौलिक एवम् अप्रकाशित

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 27, 2016 at 5:39pm
उदासीनता, बेपरवाही/लापरवाही के समसामयिक गंभीर विषय पर बढ़िया प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय सतविंदर कुमार जी। अंत में पति-पत्नी या किसी बुज़ुर्ग पात्र के संवाद के ज़रिये कोई बेहतरीन पंचपंक्ति/डंकपंक्ति रखी जा सकती थी।

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