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ज़िंदगी तेरी उदासी का कोई राज भी है
तेरी आँखों में छुपा ख्वाब कोई आज भी है
पतझड़ों जैसा बिखरता है ये जीवन अपना
कोपलो जैसे नए सुख का ये आगाज भी है
गुनगुना लीजे कोई गीत अगर हों तन्हा
दिल की धड़कन भी है साँसों का हसीं साज भी है
वो खुदा अपने लिखे को ही बदलने के लिए
सबको देता है हुनर अलहदा अंदाज भी है
काम करना ही हमारा है इबादत रब की
इस इबादत में छिपा ज़िंदगी का राज भी है
कुछ कलम के यहाँ ऐसे भी पुजारी हैं हुए
सामने राजा ने जिनके दिया रख ताज भी है
काम करता जो बुरे लोग हैं नफरत करते
काम गर अच्छे करे तब तो कहें नाज भी है F-49
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
गुनगुना लीजे कोई गीत अगर हों तन्हा
दिल की धड़कन भी है साँसों का हसीं साज भी है---बहुत सुन्दर शेर
बाकी शेरो पर आद० रवि शुक्ल भैया अपना मशविरा दे चुके हैं जो काबिले गौर है थोड़े से प्रयास के बाद ग़ज़ल और निखर उठेगी |आपको बहुत बहुत बधाई आद० डॉ० आशुतोष जी
आदरणीय रवि सर ..रचना पर बिस्तृत मार्गदर्शक प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ पतझड़ों वाले शेर पर बार बार मैं उलझ तो रहा था ग़ज़ल पोस्ट करने में समय भी लग रहा था समझ में तो नहीं आ रहा था पर रह रह कर कुछ कमी से लग रही थी आपके मार्गदर्शन से बात बिलकुल समझ में आ गयी
इस इबादत में छुपा ज़िंदगी का राज भी है ..करू तो कैसा रहेगा
राजा वाले शेर पर चिंतन कर रहा हूँ इसमें सुधार करूंगा
आदरणीय सर ..नाज मैंने इसलिए लिखा जिन कमियों की बजह से उपेक्षा और नफ्रफ मिलती है उनमे सुधर होने से उन्हें गर्व भी होगा सर ..काम तू करता बुरे लोग भी नफरत करते
काम जब अच्छे करे तब तो कहें नाज भी है ...कुछ इस तरह से परिवर्तित करना चार रहा हूँ कल इसे फिर ठीक करूंगा ...सर आपके मशविरे पर अमल करने की कोशिस करूंगा .हार्दिक धन्यवाद और सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय आश्ुातोष जी गजल के लिये आपको बधाई
मतले पर थोड़ाा अधिक समय देने का निवेदन हैै
ज़िंदगी तेरी उदासी का कोई राज भी है
तेरी आंखों मे छुपा ख्वाब कोई आज भी है एक त्वरित सुझाव के तौर पर इसे देख सकते है
पतझड़ों जैसा बिखरता है ये जीवन जब भी
कोपलो जैसे नए सुख का ये आगाज भी है उला में जब आप जब भी कहेंगे तो एक समय के सापेक्ष स्थ्िाति आप बयान करेंगे तो सानी में उस का तर्क पूरा करना होगा तो उला में जब भी को अपना से बदल कर देंखे
जीवन पतझड़ भी है तो कोपलों जैैसा नवजीवप भीी है
पतझड़ों जैसा बिखरता है ये जीवन अपना
कोपलो जैसे नए सुख का ये आगाज भी है
काम करना ही हमारा है इबादत रब की
इस इबादत में छिपे ज़िंदगी के राज भी हैं
कुछ कलम के यहाँ ऐसे भी पुजारी हैं हुए
जिनके आगे रखे राजाओं ने खुद ताज भी हैं
इन दो शेर में रदीफ में अनुस्वार हैंं हो गया है जिससे रदीफ बदल रहा है इन्हें फिर से देख लें
आज जो करते हैं नफरत वो तुझे कल चाहें
फिर कहेंगे वही तुझसे कि उन्हें नाज भी है हालांकि इस शेर में नाज करने का कारण स्पष्ट नहीं हो रहा इस लिये इसे थोडा और साफ कहने की जरूरत है । बाकी शुभ शुभ
हॉं इस शेर के लिये अलग से बधाई लीजिये
गुनगुना लीजे कोई गीत अगर हों तन्हा
दिल की धड़कन भी है साँसों का हसीं साज भी है सादर
बहुत खूब ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ |
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