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मेरी अपनी दो ग़ज़लें....

साथियो,

सादर वंदे,

मैं संगीत की साधना में रत उसका एक छोटा सा विद्यार्थी हूँ और कला एवं संगीत को समर्पित एशिया के सबसे प्राचीन " इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ " में एसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हूँ...मुझे भी ग़ज़लें कहने का शौक़ है...मैं " साबिर " तख़ल्लुस से लिखता हूँ... अपनी लिखी दो ग़ज़लें आप सबकी नज़र कर रहा हूँ...नवाज़िश की उम्मीद के साथ......

 

= एक =

रूह शादाब कर गया कोई.

दर्द आबाद कर गया कोई.

 

ख़ुश्क़ आखों को झलक दिखला के,

चश्मे-पुरआब कर गया कोई.

 

जाँ तलक आशनाई का आलम,

दिल को बरबाद कर गया कोई.

 

आशियाँ हमने ख़ुद जला डाला,

ऐसी फ़रियाद कर गया कोई.

 

रख के लब मेरी पेशानी पे,

मुझको नायाब कर गया कोई.

 

= दो =

दुनिया है बाज़ार सुन बाबा.

हर नज़र करे व्यापार सुन बाबा.

 

बेमानी है एहसासों की बात यहाँ,

ख़ुदग़रज़ी है प्यार सुन बाबा.

 

तेरी चादर तेरी लाज बचा पाए,

उतने पाँव पसार सुन बाबा.

 

हर एक गरेबाँ तर है लहू से, देखो तो-

ये कैसा त्यौहार सुन बाबा.

 

मस्जिद में हों राम, ख़ुदा मंदिर पाऊँ,

ऐसा मंतर मार सुन बाबा.

 

इंसानियत जो ज़ेहनों में भर दे "साबिर"

हुनर वोही दरकार सुन बाबा.

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Comment by Tilak Raj Kapoor on May 14, 2011 at 10:23am

ग़ज़ल दोनों ही खूबसूरत हैं।

पहली ग़ज़ल का मीटर जो मुझे समझ आया व‍ह है 'फ़ायल़ुन, फ़ायल़ुन, मफ़ाईल़ुन', दूसरी ग़ज़ल का मीटर जो मुझे समझ आया व‍ह है 'फ़यल़ुन, फ़यल़ुन, फ़यल़ुन, फ़यल़ुन,'फ़यल़ुन, फ़ा',

यह सही है ना?

Comment by ati ullah on May 14, 2011 at 10:20am
आपका प्रयास सराहनीय है .
Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on May 14, 2011 at 9:53am

 

// एक सही कोशिश- "दिल को बरबाद कर गया कोई."................बहुत सुन्दर और सही......////
 
// दुनिया है बाज़ार सुन बाबा.

हर नज़र करे व्यापार सुन बाबा.

बेमानी है एहसासों की बात यहाँ,

ख़ुदग़रज़ी है प्यार सुन बाबा.///

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