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सुना है दिल लगाने में बहुत मशहूर है दिल्ली ।
मुझे कह कर गई है वो अभी तो दूर है दिल्ली ।।

जहाँ हर शाम ढलती हो मैकदों को सजाने में ।
कहा अक्सर ज़माने ने नशे में चूर है दिल्ली ।।

चली आती है ख़्वाबों में हजारों दास्ताँ लेकर ।
तुम्हारे जुर्म से होने लगी बेनूर है दिल्ली ।।

सड़क के हादसों के नाम पर लूटी गयी है वो ।
दफ़न कुछ आबरू करके बड़ी मगरूर है दिल्ली।।

सितमगर की कहानी पूछती शरहद की वो लाशें ।
न जाने किस मुरव्वत में लगी मजबूर है दिल्ली ।।

हिफ़ाज़त मांगती माँ भारती सत्ता नसीनों से ।
कहीं माथे की है बिंदिया कहीं सिंदूर है दिल्ली ।।

सँभल के चल ज़माने में ये गलियां हुक्मरां की हैं ।
सियासत की बिसातों पर नई दस्तूर है दिल्ली ।।....



- नवीन मणि त्रिपाठी। ----- मौलिक अप्रकाशित

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Comment by rajesh kumari on September 12, 2016 at 9:53pm

बहुत  अच्छी ग़ज़ल हुई है आद० नवीन मणि त्रिपाठी जी दाद कुबूलें 

कृपया ध्यान दे...

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