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तेरी बज्म में कुछ सुनाने से पहले ।
मैं रोया बहुत गुनगुनाने से पहले ।।
न बरबाद कर दें ये नजरें इनायत ।
वो दिल मांगते दिल बसाने से पहले ।।
है इन मैकदों में चलन रफ्ता रफ्ता ।
करो होश गुम कुछ पिलाने से पहले ।।
तेरे हर सितम से सवालात इतना ।
मैं लूटा गया क्यूँ जमाने से पहले ।।
बदल जाने वाले बदल ही गया तू ।
मुहब्बत की कसमें निभाने से पहले ।।
ख़रीदार निकला है वो आंसुओं का ।
जो आकर गया आजमाने से पहले ।।
जुबाँ को हया ने इजातजत कहाँ दी ?
शबे वस्ल नजरें झुकाने से पहले ।।
बयां कर गयी सारे चेहरे की रंगत ।
तेरे दर्दे गम को छुपाने से पहले ।।
तू कहकर गया अलविदा फख्र से क्यों ।
जनाजे को मेरे उठाने से पहले ।।
मौलिक व अप्रकाशित
- नवीन मणि त्रिपाठी
Comment
अच्छे अश’आर हुए हैं आदरणीय नवीन जी, दाद कुबूल करें
आ० नवीन जी ऐसा कर सकते है -
तेरी बज्म में कुछ सुनाने से पहले ।
मैं रोया बहुत गीत गाने से पहले ।।-----------------------सादर
आदरनीय नवीन भाई , गज़ल बहुत अच्छी हुई है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें । पर एक गम्भीर गलती काफिया बन्दी मे हो गई है , जिसके कारँ बाक़ी शेर खारिज हो रहे हैं --
तेरी बज्म में कुछ सुनाने से पहले ।
मैं रोया बहुत गुनगुनाने से पहले ।। मतले मे आपने काफिया - उनाने तक कर लिया है , और बाक़ी शे र मे आने बिभाया है । अतः मतले मे सुधार अनिवार्य है , नही तो बाक़ी शे र खारिज हो जायेंगे ।
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