पड़े आफ़ात तो छुपता किसी मशहूर का बेटा
कलेजा शेर का रखता मगर मजदूर का बेटा
कहीं ऊपर जमीं के उड़ रहा मगरूर का बेटा
जमीं को चूमता चलता किसी मजबूर का बेटा
कई तलवार बाहर म्यान से आती दिखाई दें
पकड़कर हाथ राधा का चले जो नूर का बेटा
सिखाने पर परायों के भरा है जह्र नफरत का
चला हस्ती मिटाने को कोई अखनूर का बेटा
कदम पीछे हटा लेता जहाँ उसकी जरूरत हो
हर इक रहबर फ़कत कहने को है जम्हूर का बेटा
सरापा थाम लेती है तुम्हें अंगूर की बेटी
अगर होता तो क्या देता तुम्हें अंगूर का बेटा
हुनर में डूब कर उसके कलम करता ग़ज़ल गोई
ग़ज़ल में नाम उसका लिख दिया संतूर का बेटा
--------मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० गिरिराज जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ आपका दिल से शुक्रिया | आपने सही कहा सार्थक चर्चा से सार्थक बातें सामने निकल कर आती हैं |
आद० दिनेश कुमार जी ,आपको ये शेर पसंद आया भुर भुर शुक्रिया |
आदरनीया राजेश जी , बहुत कठिन रदीफ ले कर आपने बेहतरीन गज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ आपको । आ. समर भाई जी से चर्चा भी लाभ प्रद हुआ ! हार्दिक बधाई ।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका भाई जी
आद० समर भाई जी अखनूर एक कश्मीर में शह्र है जहाँ दंगे फसाद होते रहते हैं ये शेर उसी सन्दर्भ में लिया है |सादर
प्रिय प्रतिभा त्रिपाठी जी जार्रनावाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया स्नेह बनाते रखें आभार |
आद० समर भाई जी, आपके हर सुझाव का स्वागत है | आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ होंसलाफ्जाई का तहे दिल से शुक्रिया |१२२२ १२२२ में कई तलवारें कर सकते हैं क्या ?या दूसरा ऑप्शन है तभी तलवार बाहर म्यान से आती दिखाई दे | अब आपका क्या मशविरा है इन्तजार रहेगा भाई जी |
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