बह्र : २२ २२ २२ २२
सब खाते हैं एक बोता है
ऐसा फल अच्छा होता है
पूँजीपतियों के पापों को
कोई तो छुपकर धोता है
एक दुनिया अलग दिखी उसको
जिसने भी मारा गोता है
हर खेत सुनहरे सपनों का
झूठे वादों ने जोता है
महसूस करे जो जितना, वो,
उतना ही ज़्यादा रोता है
मेरे दिल का बच्चा जाकर
यादों की छत पर सोता है
भक्तों के तर्कों से ‘सज्जन’
सच्चा तो केवल तोता है
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
शुक्रिया जनाब तस्दीक अहमद साहब। इस बह्र में लयभंग न हो तो २२२ को १२१२ या २११२ की छूट ले सकते हैं
शुक्रिया जनाब समर कबीर साहब। आप के सुझावों के लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ
शुक्रिया आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
शुक्रिया आदरणीया राहिला जी
जनाब महेंद्र साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---शेर 3 ,4 और 5 का ऊला मिसरा बहर में नहीं है ,देख लीजियेगा
महसूस करे जो जितना, वो,
उतना ही ज़्यादा रोता है .... जीवन की सच्चाई बता दी आपने ।
गज़ल भी बहुत बढिया कही है , सभी शे र अच्छे लगे । हार्दिक बधाइयाँ आपको ।
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