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ग़ज़ल - कब तक खिंजां का साथ निभाया करेंगे आप।

2212 121 122 121 21
चिलमन तमाम वक्त हटाया करेंगे आप ।
तश्वीर महफ़िलों में दिखाया करेंगे आप ।।

चुप चाप आसुओं को छुपाया करेंगे आप ।
कुछ बात मशबरे में बताया करेंगे आप।।

मुझको मेरे नसीब पे यूं छोड़िये जनाब ।
कब तक खिंजां का साथ निभाया करेंगे आप।।

तहज़ीब मिट चुकी है जमाने के आस पास ।
बुझते मसाल को न जलाया करेंगे आप।।

यह बात सच लगी कि मुकद्दर नही है साथ ।
मेरे ज़ख़म पे ईद मनाया करेंगे आप ।।

आजाद आसमा के परिंदे हैं बदजुबान ।
अपना वजूद सिर्फ मिटाया करेंगे आप ।।

जब भी ग़ज़ल हुई है कोई इश्क था मुहाल ।
अशआर सब हवा में उड़ाया करेंगे आप ।।

कुछ हसरतों के नाम लिखे खत थे जो हुजूर ।
पढ़ पढ़ के बिस्तरों में दबाया करेंगे आप।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2016 at 3:59pm

आदरणीय नवीन मणि  भाई , अच्छी गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ आपको । आदरनीय समर भाई गज़ल पे कह ही चुके हैं , खयाल करियेगा , साथ् ही  , तश्वीर  को भी तस्वीर किया जाना उचित होगा ऐसा लगता है मुझे ।

Comment by Samar kabeer on September 10, 2016 at 11:19pm
जनाब नवीन मणि जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

तीसरे शैर में 'खिंजां' को "ख़ज़ाँ" कर लें ।
चौथे शैर में 'मसाल' को "मशाल" कर लें ।
पाँचवे शैर में 'ज़ख़म' सही शब्द नहीं है,सही शब्द है "ज़ख़्म",अब यहाँ ये सवाल उठता है कि अगर आप सही शब्द लिखेंगे तो मिसरा बे बह्र हो जायेगा ,और अगर ऐसे ही रहने देते हैं तो आपका शैर एक ग़लत शब्द के साथ याद रहेगा,ये मिसरा इस तरह सही हो सकता है :-

"ज़ख़्मों पे मेरे ईद मनाया करेंगे आप"

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