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ढलक गया .... (क्षणिकाएं )

ढलक गया .... (क्षणिकाएं )
१.
बंद था
एक लम्हा
पलकों की मुट्ठी में
सह न सका
दस्तक
याद की
और
ढलक गया
हौले से
.... ... ... ... ... ...
२.
था
एक ख़्वाब
जो
हकीकत से पहले
जाने कब
हकीकत में
ख्वाब हो गया
.... .... .... .... .... ....
३.
वो
ज़िदंगी का
बीता कल था

जिया मरके
जिसमें
वो सुहाना पल था

वो पल
सुख का
रूह से 
बतियाता रहा
मारने के बाद भी

सुशील सरना 

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on September 14, 2016 at 1:39pm

आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति को शीरीं अल्फ़ाज़ों ने जिस तरह मान दिया है उसके लिए बन्दा आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार है। 

Comment by Samar kabeer on September 13, 2016 at 10:36pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,तीनों क्षणिकाएं,विचारों के पैमाने के उच्च स्तर पर हैं,वाह बहुत ख़ूब,ढेरों बधाई स्वीकार करें इस शानदार प्रस्तुति पर ।

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