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परीक्षा सिर पर (लघुकथा) / (हिन्दी पखवाड़े पर) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

कक्षा दसवीं के छात्रों को कुछ अंग्रेज़ी शब्दों के बनने का इतिहास और उनके सही मानक उच्चारण बताते हुए अंग्रेज़ी के शिक्षक कहने लगे- "इसलिए मैं कहता हूँ कि कोई दम नहीं है अंग्रेज़ी भाषा में, विश्व की दूसरी भाषाओं के शब्दों से कभी उलझती, कभी संवरती सी बड़ी ही वाहियात भाषा है ये!" भावावेश में इतना कहकर वे छात्रों को अंग्रेज़ी के स्वर व व्यञ्जनों, उनसे शब्द-निर्माण और सही उच्चारण आदि का विस्तृत ज्ञान देते हुए छात्रों से सही उच्चारण का अभ्यास कराने लगे। छात्र असफल रहे, तो अपना सिर पीटते हुए छात्रों से हिन्दी व्याकरण की पुस्तक खुलवाकर व्यञ्जनों 'क्ष', 'ज्ञ', 'स', 'श' और 'ष' आदि के बारे में बताते हुए वे उनके सही उच्चारण का अभ्यास कराने लगे, जो छात्रों के हिन्दी के शिक्षक ने उनको कभी भी नहीं करवाया था। सही उच्चारण करने में असफल छात्र शर्मिन्दा होने के बजाय दांत निपोर कर ही-ही-ही करके हँसने लगे। शिक्षक ने क्रोधित होकर कहा- "इसलिए मैं कहता हूँ कि जो अपनी ही मातृभाषा, राष्ट्र-भाषा सही ढंग से सीख कर उसको मान नहीं दे सकते, वे अंग्रेज़ी जैसी भाषा को सिर पर क्यों बैठाते हैं! न हिन्दी बोलें ढंग से और न ही अंग्रेज़ी! कोई भाषा तो ढंग से सीख लें!"

"ये हम पर छोड़िये सर जी, आप तो बस सिलेबस (पाठ्यक्रम) पूरा करा दो, परीक्षा सिर पर आ रही है!" - एक छात्र ने खड़े होकर कहा।

[मौलिक व अप्रकाशित]

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 23, 2016 at 1:23am
मेरी इस ब्लोग पोस्ट पर उपस्थित हो कर विचार साझा करते हुए प्रोत्साहित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद मोहतरम जनाब समर कबीर साहब व जनाब डॉ. आशुतोष मिश्रा जी।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 18, 2016 at 4:05pm
आदरणीय शेख जी बहुत ही उम्दा प्रस्तुति ..बिलकुल आजकल यही हो रहा है ..बैसे आपकी लघु कथा के टीचर तो सर फोड़ रहे हैं लेकिन आजकल न तो छात्र पढना चाहते हैं शिक्षक तो पढ़ाना ही नहीं चाहते i
Comment by Samar kabeer on September 18, 2016 at 4:00pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,हिन्दी पखवाड़े पर बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,दिल से बधाई स्वीकार करें ।

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