For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहर-रमल मुसद्दस सामिन
2122 2122 2122
+++
काश मुझको भी मिला उस्ताद होता!
शाइरी का इक जहाँ आबाद होता।1

हर्फ अपने बात हर दिल की पिरोते,
तालियाँ पिटतीं बहुत इरशाद होता।2

राबिते ढ़ल काफिये मिलते जमीं से
हर बहर में प्यार का संवाद होता।3

फिर कहाँ कोई भटकता रूक्न होता,
नित नया इक शेर तब ईजाद होता।4

रूप का डंका बजाते फिर रहे सब,
हुश्न हर ताबीर से आजाद होता।5

मानती अपनी गजल कविता सुहाती,
फिर नहीं मन में जरा अवसाद होता।6

बेकहे कुछ तो सिखाया रहबरों ने,
रहजनों से मैं सदा नाबाद होता।7
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

Views: 591

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on September 26, 2016 at 8:15pm
इस्लाह के लिए मोहतरम समर जी का शुक्रगुजार हूँ,आदाब!
Comment by Manan Kumar singh on September 26, 2016 at 8:13pm
आभारी हूँ आदरणीय सुरेशजी।
Comment by Manan Kumar singh on September 26, 2016 at 8:12pm
आभारी हूँ आदरणीय मिश्रा जी।
Comment by Samar kabeer on September 18, 2016 at 3:55pm
जनाब मनन कुमार जी आदाब,बढ़िया ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
"फिर कहाँ कोई भटकती रुक्न होती
नित नया अशआर तब ईजाद होता"
इस शैर में दो तरह के दोष हैं,
पहला-"रुक्न" पुल्लिंग है
दूसरा-"अशआर"बहु वचन है, देखियेग ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 18, 2016 at 3:54pm
आदरणीय मनन जी इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 18, 2016 at 3:44pm
आदरणीय मनन जी बहुत ही सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।
Comment by Manan Kumar singh on September 16, 2016 at 5:22pm
आभार आपका आदरणीय अकेला जी।
Comment by Manan Kumar singh on September 16, 2016 at 5:16pm
आभार आपका
Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 16, 2016 at 2:50pm

आ.  मनन जी बहुत खूब !!! पहले के दो  शेर बड़े अच्छे लगे मुझे !!! आपको शुभकामनाएं !!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service