2122 2122 2122 2
फूल हैं खिलते निगाहें चार करते हैं,
बागवाँ पर हम बड़ा एतबार करते हैं।1
बाँटते खुशबू जमाने से रहे सब हम,
झेलते झंझा कहाँ तकरार करते हैं?2
हम बटोही प्यार के दो बोल के भूखे ,
खुशनुमा बस आपका संसार करते हैं।3
हैं विहँसते हम सदा बगिया सजाने को,
प्यास आँखों की बुझा आभार करते हैं।4
हो नहीं सकता मसल दे पंखरी कोई,
खार भी रखते बहुत हम प्यार करते हैं।5
जां लुटाने की अगर नौबत हुई तब भी,
बेझिझक एहसान का इकरार करते हैं।6
हो गये आँचल धरा का जो बिखरते हम,
हर गली,हर राह की मनुहार करते हैं।7
मैलिक व अप्रकाशित@मनन
Comment
अच्छी ग़ज़ल है आ. मनन कुमार सिंह जी
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