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सृष्टि का सबसे मधुर फिर गीत हम गाते सनम-----ग़ज़ल, पंकज मिश्र

2122 2122 2122 212

काश तेरे नैन मेरी रूह पढ़ पाते सनम।
दर ब दर भटकाव से ठहराव पा जाते सनम।।

इक दफ़ा बस इक दफ़ा तुम मेरे मन में झाँकते।
देखकर मूरत स्वयं की मन्द मुस्काते सनम।।

धड़कनों के साथ अपनी धड़कनें गर जोड़ते।
इश्क़ का अमृत झमाझम तुमपे बरसाते सनम।।

हाथ मेरे थाम कर चुपचाप चलते दो कदम।
प्रीत का जिंदा नगर हम तुमको दिखलाते सनम।।

खुद से अब तक मिल न पाए हो तो बतलाऊँ तुम्हें।
लोग कहते शेर मेरे तुझसे मिलवाते सनम।।

चाँदनी शब में नदी तट पर जो मिलने आओ तो।
ताज़ का दीदार जल में तुमको करवाते सनम।।

तुम अगर मेरे अधर सज जाती बंशी सी प्रिये।
सृष्टि का सबसे मधुर फिर गीत हम गाते सनम।।


मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 19, 2016 at 2:08pm
आदरणीय सुरेश जी सादर धन्यवाद और हार्दिक अभिवादन
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 19, 2016 at 2:03pm
आदरणीय श्री पंकज कुमार मिश्रा जी सुन्दर गजल रचना के लिए हार्दिक बधाई ।
Comment by Samar kabeer on September 19, 2016 at 10:34am
अज़ीज़म,अब ये अशआर ठीक हैं,बधाई ।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 19, 2016 at 9:22am
आदरणीय राम आसरे जी धन्यवाद
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 19, 2016 at 9:21am
जयनीत भाई को थैंक्स
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 19, 2016 at 9:21am
आदरणीय बृजेश जी बहुत बहुत आभार और हार्दिक अभिवादन
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 19, 2016 at 9:20am
आदरणीय श्याम नारायण जी सादर अभिवादन और आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 19, 2016 at 9:19am
आदरणीय बाऊजी तीसरा शेर, निम्नवत संशोधित--

धड़कनों से मेरी अपनी धड़कनें गर जोड़ते
इश्क़ का अमृत झमाझम तुमपे बरसाते सनम।।

5वें शेर का संशोधित-
खुद से अब तक मिल न पाये हो तो बतलाऊँ तुम्हें।
लोग कहते शेर मेरे तुमसे, मिलवाते सनम।।
Comment by Samar kabeer on September 18, 2016 at 3:24pm
अज़ीज़म पंकज कुमार आदाब,ग़ज़ल अच्छी हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
तीसरे शैर में भाव स्पष्ट नहीं,अमृत कौन बरसते ?

पांचवें शैर में शुत्रगुरबा का दोष आ गया है,ऊला में तुम्हें और सानी में तुझे,देखियेग ।
Comment by जयनित कुमार मेहता on September 17, 2016 at 8:49pm
अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय पंकज जी। हार्दिक बधाई आपको।।

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