छाँव बने तन भाव जगे मन चाव सजे चहकी फुलवारी ,
पावन भाव जगे मन में जब मात बनी यह देह हमारी,
ये वरदान मिला जग में जब बिटिया खेलत गोद हमारी,
चाव जगे इस जीवन के जब आँगन बीच सजी किलकारी,
.
नन्हि परी जब मात पुकारत आतम हो जय धन्य हमारी
झांझर डोलत कोयल बोलत व्याकुल हो महकी अंगनारी
मीत सखी बन जाय सदा सब बात सुने अब मोरि दुलारी
मान करे सबका फिर भी प्रतिपात सहे जग में हर नारी
.
जोगन प्रीत तजे रसना सब भोग सजे मुख खावत नाही
कृष्ण सदा बसते मन में सब भार हटे दुःख आवत नाही
साधु जपे सत् संग करे हरि नाम बिना कुछ चाहत नाही
भाव बिना मन चाव बिना तन छाँव बिना सुख पावत नाही
.
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
"प्रयास पर उपस्थित होकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत आभार" आदरणीया कल्पना जी ।
छंद का ज्ञान तो नहीं है पर रचना बहुत अच्छी लगी | हार्दिक बधाई आदरणीया अलका जी |
आ. अलका जी इस छंद के शिल्प के बारे में जानकारी शून्य है, मगर प्रवाह और भावाभिव्यक्ति अच्छी लगी, बधाई स्वीकार करें
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