खामोश मौसम ....
अपनी ही आवाज़ों के साथ
बैसाखियाँ
आग में जलने लगी
समय
और सुईयों की रफ़्तार
अपनी बेख़ौफ़ चाल के साथ
ज़िन्दा होने का
सबूत देती रही
जज़्बात
हड्डियों की बैसाखियों पर
खामोशियों के लिबास पहने
खुद को ढोते रहे
एक बैसाखी दिल की
किसी शरर की उम्मीद में
तारीकियों से लिपटी
पल पल जलती हुई
ज़ख्मों की तलाशी लेती रही
जलते हुए ख़्वाब
शायद अपनी बैसाखियाँ
भूल गए
और तुम भी तो
अपनी बैसाखी भूल गए
रूहानी ज़िस्म को
वादे की
कैसी बैसाखी दी
कि हर बैसाखी
इस बैसाखी को देखने लगी
चराग़ के मन में
सबा से लड़ती
मेरे दिल की बैसाखी
जलती रही
मैं नहीं जानती
सच
झूठ
वादे
और
कसमों की जलती बैसाखियाँ
क्यों जली
मगर
मेरे ख़्वाबों के जज़ीरों में
उम्मीदों की
जलती बैसाखियों पर
धधकते रहे
जाने कितने
खामोश मौसम
मेरे
फ़ना होने के बाद भी
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Tasdiq Ahmed Khanजी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से मेरा सृजन उपकृत हुआ । आपके इस आत्मीय स्नेह का दिल से आभार।
आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी प्रस्तुति को अपनी स्नेह बरखा से प्रोत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया।
मोहतरम जनाब सुशील सरना साहिब , जितने अच्छे अलफ़ाज़ उतनी ही खूबसूरत पेश कश , दिल की गहराइयों को छूती एक और सुन्दर कविता ,के लिए दिल से मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं --
आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से मेरा सृजन उपकृत हुआ । आपके इस आत्मीय स्नेह का दिल से आभार।
आ. सुशील सरना जी अच्छी रचना हुई है बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय Kalipad Prasad Mandal जी प्रस्तुति को अपनी स्नेह बरखा से प्रोत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से मेरा सृजन उपकृत हुआ । आपके इस आत्मीय स्नेह का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया ने सदा मेरे सृजन को प्रोत्साहित किया है। आपके इस आत्मीय स्नेह का दिल से आभार।
मैं नहीं जानती
सच
झूठ
वादे
और
कसमों की जलती बैसाखियाँ
क्यों जली
मगर
मेरे ख़्वाबों के जज़ीरों में
उम्मीदों की
जलती बैसाखियों पर
धधकते रहे
जाने कितने
खामोश मौसम
मेरे
फ़ना होने के बाद भी
गहन भाव, एक अनुत्तरित प्रश्न को प्रस्तुत करती बहुत सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें आ सुशील सरना जी |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online