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गज़ल - कनखियों से एक वादा फिर हुआ

2122  2122  212

कनखियों से एक वादा फिर हुआ

हाँ, मुहब्बत का तकाजा फिर हुआ

 

हम तो समझे थे बहारें आ गयीं  

मौत का सामान ताजा फिर हुआ

 

उल्फतें बढ़ती रहीं यह देखकर  

इश्क का दुश्मन ज़माना फिर हुआ

 

रास बर्बादी मेरी आयी उन्हें

बाद मुद्दत मुस्कराना फिर हुआ

 

लौट आयेंगे सुना था एक दिन

किन्तु जीते जी न आना फिर हुआ

 

रूह रुखसत हो वहां उनसे मिली

और मंजर आशिकाना फिर हुआ 

 

आ गया मैं छोड़ जन्नत के मजे

लखनऊ मेरा ठिकाना फिर हुआ

 

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by Dr. Vijai Shanker on October 9, 2016 at 3:14am
या मैं छोड़ जन्नत के मजे
लखनऊ मेरा ठिकाना फिर हुआ।
बहुत खूब , बधाई ,आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , सादर।
Comment by नाथ सोनांचली on October 9, 2016 at 12:23am
लखनऊ मेरा ठिकाना फिर हुवा।

बहुत खूब

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