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फोर ईडियट्स (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

असफल प्रेम-विवाह ने और आधुनिक जीवन जीने की ज़िद ने मधु को आज जिस मुकाम पर छोड़ा था, वहां रईस पति और दो सुंदर सन्तानों के बावजूद केवल नीरसता थी, अकेलापन था। उम्र के पाँचवें दशक में उसे महसूस हुआ कि अपने माँ-बाप के अरमानों का गला घोंटना और माँ-बाप बनने पर अपनी सन्तानों के ज़रिये अपने अरमान पूरे करने की कोशिश के दूरगामी परिणाम क्या होते हैं। पति धन-दौलत के पीछे भागता रहा। बेटा बाप के अरमान पूरे करने के लिए अपनी रुचियों के विरुद्ध व्यर्थ की शैक्षणिक डिग्रियां हासिल करके बस जिम जाकर शरीर-सौष्ठव प्रतियोगी बनकर रह गया था। स्वयं ब्यूटी-पार्लर चलाकर किसी तरह अपने अरमान पूरे करते हुए मधु ने अपनी बेटी को ब्यूटिशयन का पाठ्यक्रम क्या कराया कि वह एक अलग ही दिशा पर चल पड़ी। दोनों सुंदर सन्तानों को पथभ्रष्ट करने में माँ-बाप का भी तो दोष रहा था।

"मम्मा, तुमने तो अपने ही हाथों अपनी ज़िन्दगी बरबाद कर ली थी, मुझे मेरे हिसाब से जी लेने दो, कोई रोक-टोक, नुक्ता-चीनी मुझे बरदाश्त नहीं! शादी की तो अभी बात ही मत करना!" जवान बेटी के ये ताने सुने या बेटे के ये शब्द; "बाप ने तो बस पैसे फैंक कर मुझे अपनी मनचाही डिग्रियां दिलवादीं, मैं तो कुछ और ही बनना चाहता था!" कभी पति से कोई चर्चा करने की कोशिश करती, तो यही सुनने को मिलता; "आज की दुनिया में पैसा ही सब कुछ है, किस बात की कमी है घर में, सबके लिए सब कुछ तो कर दिया!"

परिवार में चार सदस्य, चार तरह की जीवन शैलियाँ और चार तरह के सोच रह गए थे! रिश्ते केवल नाम मात्र के रह गए थे। मधु कभी फोटो-एलबम देखकर, तो कभी आइना देख कर अपने अतीत और वर्तमान का बस मूल्यांकन करती रहती। वह सच्चाई के धरातल पर थी।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 13, 2016 at 8:52pm
रचना पर समय देकर अपनी राय से वाक़िफ़ कराने व स्नेहिल हौसला अफ़ज़ाई हेतु सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीया नीता कसार जी व आदरणीय विजय निकोरे जी।
Comment by vijay nikore on October 13, 2016 at 3:25pm

यथार्थपूर्ण लघु कथा बहुत अच्छी लगी। बधाई।

Comment by Nita Kasar on October 12, 2016 at 1:13pm
एेसे माता पिता भी होते है जो हर सुविधा उपलब्ध कराकर सोचते है उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारियों की इतिश्री कर ली पर ये गलत है दौलत ही सब कुछ नही होती है ।प्रेम विवाह की इन्तहां एेसी भी ।बधाई आपको आद०शेख शाहिद उस्मानी जी ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 12, 2016 at 9:08am
रचना पर समय देकर इसके भावों की गहराई तक जाकर अनुमोदन करने व प्रोत्साहन देने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीया अपर्णा शर्मा जी।
Comment by Arpana Sharma on October 11, 2016 at 11:18pm
आदरणीय श्रीमान् शेख श़हजाद उस्मानी जी- आजकल अनेकों घरों में यही कहानी है। बहुत गहन भावार्थ लिए और प्रशनचिन्ह उठाती एक यथार्थ परक लघुकथा के लिये बहुत बधाई ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 11, 2016 at 8:24pm
अपनी त्वरित प्रतिक्रिया द्वारा विचार साझा करते हुए रचना का अनुमोदन करने व स्नेहिल हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब सुरेश कुमार 'कल्याण' जी।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 11, 2016 at 11:16am
आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी साहब बिल्कुल यथार्थ चित्रण है आज के वक्त का। आधुनिकता के युग में यही तो हो रहा है । सुन्दर एवं सारगर्भित रचना के लिए हार्दिक बधाई ।

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