फाइलातुन-मफाइलुन-फइलुन
कमसिनी में शबाब पहने हुए |
हुस्न निकला निक़ाब पहने हुए |
तुहमते बेवफ़ाई का कब से
हम हैं बैठे खिताब पहने हुए |
कौन आया है चीखी तारीकी
बज़्म में माहताब पहने हुए |
आँख में इंतज़ार दिल में तड़प
मैं हूँ यह इंक़लाब पहने हुए|
मत यक़ीं करना उसपे आया है
जो वफ़ा का हिजाब पहने हुए |
सामना अस्ल का ज़रूरी है
क्यूँ हैं आँखों में ख्वाब पहने हुए |
किस की तस्दीक़ आई है शामत
आए हैं वह इताब पहने हुए |
इताब-----गुस्सा
( मौलिक वअप्रकाशित )
Comment
जनाब राम बली साहिब , ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
मोहतरम जनाब विजय साहिब , हौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया ----
इस अच्छी गज़ल के लिए बधाई।
मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और आपकी हौसला अफ़ज़ाई बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
आपका कहना दुरुस्त है , इस मिसरे को पहले इस तरह लिखा था --" मेरे घर माहताब पहने हुए " मगर बाद में तब्दील कर दिया , अब इसी को
रख लूंगा ----शुक्रिया
मोहतरम जनाब सौरभ साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और आपकी हौसला अफ़ज़ाई बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
मोहतरम जनाब गिरिराज साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और आपकी हौसला अफ़ज़ाई बहुत बहुत शुक्रिया
एक अच्छी ग़ज़ल हुई है, आदरणीय. बधाइयाँ
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