For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - जाती तेरे मिज़ाज से क्यूँ बेरुख़ी नहीं

221 2121 1221 212
बुझते रहे चिराग गई तीरगी नही ।
फिर भी हवा के रुख से मेरी दुश्मनी नही ।।


आ जाइए हुज़ूर मुहब्बत के वास्ते ।
दैरो हरम में आज कहीं बेबसी नहीं ।।


बहकी अदा के साथ बहुत आशिकी हुई ।
गुजरी तमाम रात मिटी तिश्नगी नहीं ।।


कब से नज़र को फेर के बैठी है वो सनम ।
शायद मेरे नसीब में वो बात ही नहीं ।।


माना कि गैर से है ये वादा भी वस्ल का ।
उल्फ़त की बेखुदी में कहीं रौशनी नही ।।


तेरा वजूद है तो सलामत है ये शहर ।
वरना मेरी किसी से क़ोई बन्दगी नहीं ।।


मुझको मिले हैं दर्द वफ़ा की तलाश में ।
जाती तेरे मिजाज से क्यूँ बेरुखी नहीं ।।


मुमकिन है मैकदों में रकीबों की शाम हो ।।
यह बात सच नही कि वहां मयकशी नही ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 477

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 28, 2016 at 2:02am
आ0 रामबली गुप्ता साहब आभार
Comment by रामबली गुप्ता on October 25, 2016 at 12:37pm
वाह क्या बात है आद0 भाई नवीन जी बहुत सुंदर ग़ज़ल कही आपने। दिल से बधाई लीजिये।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2016 at 11:36am

आदरणीय नवीन भाई , बहुत खूबसूरत गज़ल हुई है सभी शेर लाजवाब हुये हैं , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें । आ. समर भाई की सालाप पर गौर फरमाइयेगा ।

Comment by रामबली गुप्ता on October 25, 2016 at 2:16am
क्या बात है भाई नवीन जी बहुत ही उम्दा कही है आपने दिल से मुबारकबाद लीजिये।
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 24, 2016 at 2:39pm
आदरणीय कबीर साहब सादर नमन । आपकी सलाह मेरे लिए अत्यंत कीमती है । सादर आभार भी ।
Comment by Samar kabeer on October 24, 2016 at 2:06pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
चौथे शैर के ऊला मिसरे में 'बैठी' को "बैठा" करलें 'सनम'पुल्लिंग है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service