नेहा सुबह से उदास थी। शादी के पाँच साल होने को आए थे, पर उसकी गोद अब तक सूनी थी। उसकी और उसके पति की मेडीकल जाँच हो चुकी थी। सब ठीक था। फिर भी बात बन नहीं रही थी। बस सास इसी बात को लेकर अपने बेटे पर लगातार दबाव डाल रही थी कि वह उसे तलाक क्यों नहीं दे देता।
माँ की बातों में आकर आज सुबह ही अभिषेक तलाक के कागजात बनवाने वकील के पास चला गया था। भविष्य की चिंता को लेकर नेहा की आँखों में आँसू छलक आए थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसे लग रहा था कि हो सकता है अभिषेक का गुस्सा ठंडा पड़ जाए और वह वकील से मिले बिना ही लौट आए। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
दोपहर होते-होते अभिषेक कागजों के साथ उसके सामने खड़ा था। उसकी सास उससे उन कागजों पर हस्ताक्षर करने के लिए कह रही थी। नेहा के सामने जैसे अंधेरा छा गया। वह चक्कर खाकर गिर पड़ी।
कोई अनहोनी न हो जाए इस डर से सास ने शोर मचा दिया। आसपड़ोस के कुछ लोग भी इकट्ठे हो गए। सास ने पास के एक डॉक्टर को भी बुला लिया।
"घबराने की कोई बात नहीं है आप दादी बनने वाली हैं।"- डॉक्टर ने चैकअप करके बताया तो माँ-बेटे के साथ-साथ अन्य लोगों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। थोड़ी देर बाद नेहा भी होश में आ गई।
अब अभिषेक की खुशी का ठिकाना नहीं था। सब लोग उससे मिठाई की माँग करने लगे। डॉक्टर के जाते ही उसने तलाक के कागज उठाए और फाड़कर कूड़ेदान में डाल दिए।
अभिषेक दौड़कर बाजार गया और फटाफट मिठाई खरीदी। सारे मोहल्ले में वह मिठाई बाँटता हुआ घर लौटा।
"नेहा, अब मैं बहुत खुश हूँ।" अभिषेक ने अपने कमरे में पहुँचकर नेहा को आलिंगन में लेने की कोशिश की।
"अब यह प्यार जताने का हक तुम खो चुके हो। मुझे अब इस घर में नहीं रहना है। मैं हमेशा के लिए तुम्हें छोडकर जा रही हूँ। "- कहते हुए नेहा ने उसको झटक दिया।
कमरे के दरवाजे पर खड़ी सास ने कहा, "तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या? कुछ भी बोले जा रही है। अब तो सब ठीक हो गया है न...?"
"हाँ, अगर आज ये पता न चलता कि मैं पेट से हूँ तो भी सब ठीक होता अभिषेक....?"- अभिषेक ठगा सा रह गया था। उसके पास कोई जवाब नहीं था।
नेहा बैग उठाकर जाने लगी।
"जा.....जा.... लेकिन इस बच्चे को बाप का नाम कैसे देगी तू ?"-सास ने पीछे से ताना मारा।
"अब उसके लिए माँ का नाम ही काफी है।" पेट में आई नन्हीं जान ने जैसे उसे जीने का सहारा दे दिया था। अभिषेक जब तक उसे मनाने आता तब तक नेहा घर की सारी दहलीज पार कर गई थी।
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
बहुत बोल्ड स्टेप लिया नायिका ने जो इस लघु कथा को और श्रेष्ठ बनाती है आज कल की यही डिमांड है औरत को न जाने क्या खिलौना समझ रक्खा है बहुत पसंद आई आपके ये लघु कथा आद० विनोद जी हार्दिक बधाई .
एक बहूँ जब सास और पति को सबक सिखाकर सुंदर सन्देश देने के कारण इस लघुकथा को पसंद किया जाएगा | बधाई स्वीकारे
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