For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2 2 2 2 2 2 2

-.-
पन्नो में घुल जाती हूँ
स्याही सी बह जाती हूँ

.

नाता बस मन से मेरा
भावो को कह जाती हूँ

.

जानूँ न* मैं छंद पिरोना
मन की तह बताती हूँ

.

न सुर है न लय सलीका
पाबन्दी तज जाती हूँ

.

खिलती भी हूँ सावन सी
पतझड़ सी झड़ जाती हूँ

.

सजा कर खुद को फिर से
पन्नो पर सज जाती हूँ

-.-
 "मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 894

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on November 8, 2016 at 4:56pm

आदरणीय समर कबीर जी ,सादर प्रणाम ।  क्षमा कीजियेगा बहुत दिन बाद रिप्लाई कर रही हूँ , बिटिया बीमार थी।

आपकी बात का मुझे बिलकुल भी बुरा नहीं लगा मैं बहुत अच्छे से जानती हूँ की मैं शब्दो को स्वछंद छोड़ देती हूँ उन्हें बांध नहीं पाती, इसीलिए केवल मन के भाव ही लिख पाती हूँ। 
इस मंच की सबसे अच्छी बात यही है की यहाँ गुणीजन सिखाने और दोष सुधार करने में पीछे नहीं हटते। मैं भी यहाँ सिखने की इच्छा से ही आई हूँ। आपकी सीख पर ध्यान देते हुए मैं प्रयासरत हूँ। चकित कर पाऊँगी या नहीं ये तो मैं नहीं जानती क्योंकि मेरा लेखन बेलगाम सा हो जाता है,पर मैं कोशिश जरूर करती रहूंगी ।  धन्यवाद । सादर।

Comment by Samar kabeer on October 25, 2016 at 9:00pm
मेरी बात का बुरा न मानियेगा,ये सिर्फ़ तुकबन्दी है और कुछ नहीं ।
मैने जब ग़ज़ल के सफ़र की इब्तिदा की थी तब मेरे स्व.पिताजी(जो एक अच्छे शैर5 थे)ने मुझे यही सलाह दी थी कि बेटा ख़ूब पढो फिर लिखो,तो तुम कुछ कर पाओगे वरना बेकार में समय वियर्थ न करो,उस वक़्त हमारे पास इतने वसाइल नहीं थे,जो कुछ था वो सिर्फ़ किताबें थीं,आज के युग में तो बटन दबाते ही आप जो पढ़ना चाहें पढ़ सकते हैं,कितना आसान हो गया है सब,बस दृढ़ निश्चय करना होगा,कोई भी विधा हो बिना अध्यन के उसमे आप एक क़दम नहीं चल सकतीं ।
और अध्यन के बाद जो कलाम पर निखार आएगा उसे आप ख़ुद महसूस करेंगी,फिर आपको ये नहीं पूछना पड़ेगा कि,ये रचना किस विधा की है ?क़ाफ़िया क्या होता है ?कई सदस्य इसी मंच पर बहुत कुछ सीखे और आज उनकी लेखनी पर जो निखार है उसे देख कर हम चकित रह जाते हैं कि ये वही सदस्य है जिसे कुछ दिन पहले बह्र की कोई समझ नहीं थी और आज कितनी उम्दा ग़ज़ल कह रहा है,और सोने पर सुहागा ये कि अब दूसरों की इस्लाह भी कर देता है,और ये सब उसकी लगन और मिहनत का नतीजा है,और ओबीओ की देन,में पूरे वसूक़ से ये बात कहता हूँ कि ओबीओ से बहतर दूसरा कोई मंच नहीं,ये चाँद और सूरज की तरह अकेला मंच है ।
आप मेरी ही मिसाल ले लीजिए,मैने उर्दू विधाओं के अलावा हिन्दी। विधाओं में कभी नहीं लिखा,लेकिन ओबीओ से जुड़ने के बाद नतीजा सबके सामने हैं,मैं सार छन्द भी लिखने लगा, दोहे भी लिखने लगा, और अब लघुकथा भी लिखने लगा हूँ,और ये सब ओबीओ से सीखा है,ये मैं सीखना चाहता था इसलिये सीख रहा हूँ,वरना ओबीओ का सिर्फ़ सदस्य बना रहता तो कुछ न सीख पता ।
आपसे हमारी बहुत सी उम्मीदें वाबस्ता हैं,और हम चाहते हैं आप ख़ूब प्रयास करें और कुछ दिनों बाद हमें चकित करें,उम्मीद है बात आपने समझ ली होगी ?।
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 25, 2016 at 7:02pm

जी,  आदरणीय  समर कबीर जी , नेक सलाह के लिए शुक्रिया ,वैसे ये जो भी लिखा है इसे किस श्रेणी में रखा जा सकता है। सादर।  

Comment by Samar kabeer on October 25, 2016 at 5:48pm
आपको अध्यन करना चाहिये, ओबीओ पर सब कुछ मिल जायेगा ।
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 25, 2016 at 5:44pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ,बहुत धन्यवाद,बहुत अच्छे से बताया आपने ,अब  दुबारा कोशिश करती हूँ।  सादर। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2016 at 5:33pm

आदरणीया अलका जी --   रच, बस, तह, तज, झर, सज.   ये हमकाफिया नही हो सकते , अ की छोटी मात्रा की समानता को काफिया नही मानते ! वहीं अगर  रचा , बसा, मिला , रहा  ले लें हो   आ काफिया मान सकते हैं ।

पन्नो में घुली जाती हूँ     घुल + ई
स्याही सी बसी जाती हूँ   -  बस + ई         करें तो ई काफिया मान सकते हैं ।  ये केवल समझाने के लिये है , अर्थ न देखें ।

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 25, 2016 at 4:18pm

 आदरणीय सुनील प्रसाद(शाहाबादी) जी ,हौसला अफ़ज़ाई के लिए धन्यवाद। सादर। 

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 25, 2016 at 4:16pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी  जी नेक सलाह के लिए धन्यवाद मैंने कक्षा में ही सीखा है ....पर मुझसे गलती हो गई ,जब लिखने बैठती हु तो कुछ न कुछ भूल जाती हूँ। सुधार का  प्रयास कर रही हूँ  

क्या यह काफिया सही बन रहा है  

रच, बस, तह, तज, झर, सज. 

  आभार। सादर। 

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 25, 2016 at 4:09pm

आदरणीय गुणीजन  कृपया बताने  का कष्ट  करे  क्या यह काफिया सही बन रहा है  

रच, बस, तह, तज, झर, सज. 

। सादर आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2016 at 11:28am

आदरनीया अलका जी, गज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है , पर आपकी ग़ज़ल मे  काफिया ही नही है , और बिना फाफिया के गज़ल होती ही नही , हाँ बिना रदीफ ग़ज़ल हो सकती है । मुझे लगता है आपको मंच मे उपलब्ध '' गज़ल की बातें ''  का गंभीरता से अध्ययन करना चाहिये एक दो बार ।

प्रयास के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ , प्रयास ज़ारी रखियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
47 minutes ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदाब, आदरणीय,  ' नूर ' मैंने आपके निर्देश का संज्ञान ले लिया है! "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बहुत बहुत आभार आ. सौरभ सर ..आप से हमेशा दाद उन्हीं शेरोन को मिलती है जिन पर मुझे दाद की अपेक्षा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय नीलेश भाई,  आपकी इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद और कामयाब अश'आर पर…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. शिज्जू भाई "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,आपको धुआ स्वीकार नहीं हैं तो यह आपका मसअला है. मैंने धुआँ क़ाफ़िया  प्रयोग में…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल के फीचर किए जाने की हार्दिक बधाई।"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह, आदरणीय हरिओम जी, वाह।  आप कुण्डलिया छंद के निष्णात हैं। आपके सहभागिता के लिए हार्दिक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  आपकी छंद रचना और सहभागिता के लिए धन्यवाद।  योगी जन सब योग को,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"छंदों की प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय अशोक जी"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अजय गुप्ता जी सादर, प्रदत्त चित्र को छंद-छंद परिभाषित किया है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक  भाईजी  छंदों की प्रशंसा और प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service