ठहाकों की आवाज़ से कमरा गूंज रहा था, आज बहुत सालों बाद रीमा का सहपाठी रोहन उससे मिलने आया था| पिछले दो घंटे से पिछले १५ सालों की बातें दोनों एक दूसरे को बता रहे थे और साथ पढ़े बाकी दोस्तों के बारे में भी एक दूसरे को बताते जा रहे थे| रीमा ने रमेश को भी बता दिया था कि ऑफिस से जल्दी आ जाना और उसने हामी भर दी थी|
अचानक बात का सिलसिला कॉलेज के जमाने के शौक के बारे में चल निकला| रोहन ने एक गहरी सांस ली और अपने सर पर हाथ फेरते हुए बोला "यार, तुम्हारी एक आदत मुझे अब भी नहीं भूलती| कितना चिढ़ती थी तुम उस लड़के से जिसके सर पर बाल बहुत कम थे और उसको टकलू बोलने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी| उस समय मैं तो बच जाता था क्योंकि मेरे सर पर बालों की बढ़िया फसल लहलहाती थी| लेकिन अब तो स्थिति तुम देख ही रही हो कि काफी ख़राब हो गयी है"|
रीमा ने अब ध्यान दिया, वाकई उसके सर के बाल काफी झड़ गए थे| उसके चेहरे पर एक मुस्कराहट आ गयी लेकिन उसने बात बदलने के लिए कहा "खैर ये बताओ, अपने परिवार से कब मिलवाओगे"|
"बहुत जल्द मिलवाऊंगा, अगली बार साथ ही लेकर आऊंगा| लेकिन तुम एक बात का ध्यान रखना, उसके सामने मुझे टकला मत बुलाना वर्ना वो बहुत बुरा मान जाएगी", रोहन ने कस कर ठहाका लगाया|
रीमा ने भी भरसक उसके ठहाके में उसका साथ देने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पायी| तब तक रोहन ने एक बार फिर उससे कहा "अच्छा ये बता, अगर तेरी शादी किसी टकले से तंय हुई होती तो तुम तो मंडप से ही उठ कर भाग गयी होती| खैर जरा अपने महाशय की एक फोटो तो दिखा मुझको, देखूं तो सही कितने बाल हैं सर पर"|
"मैं चाय लेकर आती हूँ", कहकर रीमा उठी और किचन में घुस गयी| रोहन भी वहीँ पड़ी मैगज़ीन लेकर पलटने लगा तभी दरवाजे की घंटी बजी और थोड़ी देर में रमेश ने आकर रोहन से हाथ मिलाया और दोनों आमने सामने बैठ गए|
रीमा जैसे ही चाय लेकर अंदर आयी, उसी समय रोहन की नज़र रमेश के सर पर पड़ी| एकदम सफाचट सर चाँद की तरह चमक रहा था और रीमा की नज़र जैसे ही रोहन से मिली, वह झेंप गयी|
"अरे आप भी मेरी तरह टकले हो गए", कहकर रोहन ने एक जोर का ठहाका लगाया और रमेश भी उसमें शामिल हो गया| झेंप मिटाकर रीमा भी अब मुस्कुराने लगी|
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आ गोपाल नारायण जी, बस एक व्यंग्य लिखने की कोशिश की थी| आगे और बेहतर लिखने का प्रयास रहेगा
आ० विनय कुमार जी , आपकी रचना आपकी प्रतिभा से न्याय नहीं करती . पर कभी कभी ऐसा सबसे होता है . सादर .
शुक्रिया आ मिथिलेश वामनकर जी भूल सुधार करवाने के लिए
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online