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गजल(दूकानें सजी हैं.....)

गजल#(नोट बंदी के फलितार्थ)-7
* एक वार्त्तालाप*
******************************
दुकानें सजी हैं ,दिखाते खरीदो,
कहें बंद जिनकी,चलो अब कहीं तो।1(आज का सच)

अभी दौर मुश्किल हुआ जा रहा है,
उठेगी ही अर्थी,ठहर भर घड़ी तो।2(चेतावनी)

बुझे रात के सब मुसाफिर सुबह तक,
जलाती बहुत है प्रखरता मुरीदो!3(अनुभूति)

बड़े जोड़ से तो बटोरे थे' टुकड़े
जलाना, बहाना अखरता मुरीदो!4(आत्मकथ्य)

हुआ ही कहाँ कुछ?बता दो बखत है,
बचा है वसन बिन नहाना अभी तो।5(अंतिम चेतावनी)
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

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Comment

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Comment by Manan Kumar singh on December 2, 2016 at 12:52pm
आदरणीय गिरिराज भाई, आभारी हूँ।

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Comment by गिरिराज भंडारी on December 2, 2016 at 10:16am

आदरणीय मनन भाई , अच्छी गज़ल कही है , वर्तमान पर , बधाई आपको ।

हुआ ही कहाँ कुछ?बता दो बखत है,
नहीं तो वसन बिन नहाना अभी तो     ---  सानी के लिये आ. समर भाई जी की सलाह आयी ही है , मै भी एक दे रहा हूँ , जिसे सही समझें स्वीकार कीजियेगा

हुआ ही कहाँ कुछ?बता दो बखत है,
 बचा है वसन बिन नहाना अभी तो

Comment by Manan Kumar singh on November 30, 2016 at 2:12pm
आदरणीया निधि जी, गजल पसंद आयी ,तो गजल कामयाब हुई।आपका आभारी हूँ।
Comment by Nidhi Agrawal on November 30, 2016 at 11:48am

बहुत मस्त ग़ज़ल कही आपने आदरणीय मनन कुमार जी. एकदम सामयिक विषय नाज़ुक भी .. बहुत ख़ूबसूरती से पिरोया है हर शेर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 28, 2016 at 11:31am

बहुत सूंदर l

Comment by Manan Kumar singh on November 27, 2016 at 9:30pm
आदाब मोहतरम समर जी।
Comment by Manan Kumar singh on November 27, 2016 at 9:29pm
आभारी हूँ आदरणीय समर जी।काले धन वालों का बिना वसन(वस्त्र) नहाना बाकी है,ऐसा कहना चाह रहा था मैं,सादर।
Comment by Samar kabeer on November 27, 2016 at 9:18pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,आज के हालात पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
आख़री शैर के सानी मिसरे में 'नहाना अभी तो' को "नहालो अभी तो" करना उचित होगा ?

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