समय के साँचे में कुछ भभका सहसा
गुन्थन-उलझाव व भार वह भीतर का
चिन्ताग्रस्त, तुमने जो किया सो किया
वह प्रासंगिक कदाचित नहीं था
न था वह स्वार्थ न अह्म से उपजा
किसी नए रिश्ते की मोह-निद्रा से प्रसूत
ज़रूर वह तुम्हारी मजबूरी ही होगी
वरना कैसे सह सकती हो तुम
मेरी अकुलाती फैलती पीड़ा का अनुताप
तुम जो मेरे कँधे पर सिर टिकाए
आँखें बन्द, क्षण भर को भी
मेरा उच्छवास तक न सह सकती थी
और अब ....
कभी इस कभी उस स्थिति के नेपथ्य में
छोटी-मोटी बातों में भी अनायास
कुछ भी होना
या न होना
सब मेरा ही अपराध हो जाता है
अप्रमाणिकता जिसकी बड़ी देर तक मुझमें
भटकती परखती सुलगती रहती है
काँपते उदगारों के दीखते परिदृश्य में
शब्द हवा में फड़फड़ाते
उलझे... अनसुने... घबराए...
उतरकर तुम तक पहुँच ही नहीं पाते
फड़फड़ाते अनसुने शब्दों के अर्थों का भार
व्यथित अंगार, स्वयं से स्वयं की दूरियाँ
विक्षोभित मन यह फ़ासले सह नहीं पाता
गहराता जा रहा है भीतर स्याह घेरे में
पिघल-पिघल कर विस्तृत होती पीड़ा में
निस्तब्धता का ज़हर
जीवन के अन्त में अन्त तक
मानसिक सूक्षमतम कोषों में
तुमसे संवेदना की अपेक्षा करते
कण-कण होकर बिखरते
ऐसे में दरारें नहीं पड़ जाएँगी क्या
समय के साँचे में दीवारों को ताकते ?
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-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कल्पना जी
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय नरेन्द्रसिंह जी
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मोहित जी
बहोत खूब सुन्दर रचना
आपकी रचनाओं में गहन चिंतन नज़र आता है आ वीजय सर| एक और बढ़िया रचना| हार्दिक बधाई सर|
//भाव सिन्धु की दशा का सुन्दर वर्णन.//
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुरेन्द्र जी।
//भावनावों को मर्मस्पर्शी संवेदना के माध्यम से उकेरती इस अद्भुत रचना के लियी आपको प्रणाम//
आपसे मिली यह सराहना मेरे लेखन-कर्म के लिए बहुत मान्य रखती है। आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई गोपाल नारायन जी।
//आपकी रचनाएं हमेशा एक गहन दर्शन से ओतप्रोत होती हैं। यह रचना भी उसी श्रेणी की उत्कृष्ट रचना है//
आपसे मिली यह सराहना मेरे लिए पारितोषिक से कम नहीं है, आदरणीय विन्ध्येश्वरी प्रसाद जी। आपका
हार्दिक धन्यवाद।
आदरणीया राजेश जी,
//आपकी हर रचना निःशब्द कर देती है बहुत कुछ सोचने को मजबूर भावनाओं का ज्वार भाटा आपकी कलम से मुसल्सल बहता है जिससे पाठक बंध जाता है //
आपसे ऐसी उच्च सराहना मिलना मेरे लिए पारितोषिक है और मुझको और भी अच्छा लिखने की प्रेरणा देती है। हार्दिक धन्यवाद। सुखी रहें।
आपकी हर रचना निःशब्द कर देती है बहुत कुछ सोचने को मजबूर भावनाओं का ज्वार भाटा आपकी कलम से मुसल्सल बहता है जिससे पाठक बंध जाता है बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति पर आद० विजय निकोर जी
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