For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पलकों में प्यार

समय की कोई अनदेखी गुमनाम कढ़ी

संभावनाओं की  रूपक  रश्मि से  भरी

प्राण-श्वास को पूर्ण व पुलकित करती

पेड़ों की छायाएँ घटती मिटती बढ़ती-सी

धरती के गालों पर छायाएँ बेचैन नहीं थीं

किसी मीठे समीर की मीठी कोमल झकोर

हँसा कर फूलों को करती थी आत्म-विभोर

प्रात की नई उमंगों में भू को नभ से जोड़ते

जिज्ञासा की उजली चादर के फैलाव में हम

कोरे बचपन में एक ही पथ पर थे साथ चले

आयु की मामूली सच्चाईओं से घिरे हम मिले

मन था तुम्हारा, सफ़र में हम कुछ  तेज़ चलें

पर कठिन अनुभव पिछले थे अवशेष मुझमें

एक ही पथ पर,  मेरे धीरे चलते  वह फ़ासला

बीच हमारे अनजाने बढ़ता गया, बढ़ता गया 

कभी शरमाई चाँदनी ललाट पर सिंदूर लगा कर

लहरा देती थी  पगलाई खिलखिलाहट  तुम पर

घबराए प्रतीकों के मध्य था अब गूँज रहा मौन

झकझोर कर साँसों को शायद वह कह रहा था

बचपन का  वह साथ हमारा  बनावटी नहीं था

मेरी आयु के वर्षों की  रग है  अब फड़क रही

रक्त-कोष में है कटु मानव-अनुभवों का शोर

उफ़नती दूरी, बात पुरानी, धड़कन भी अधूरी

हवा में उड़ती कहानी-सी यादों से  सुनता  हूँ ..

याद तो आता होगा वह सफ़र तुमको भी कभी

बचपन की उन यादों के अँधियाले ताल में

अब  आधी-पहचानी-अनजानी थरथराहट

मेरे निर्जन प्रसारों में गूँजता है एक सवाल

कह दो सच, क्या अभी भी मेरे प्रति तुमने

छुपा रखा है पलकों में वह प्यार बंद करके ?

                   ------------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 659

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on December 14, 2017 at 3:33pm

//आपकी कविता में जैसे शब्द बोलते हुए प्रतीत हिट हैं,और किसी चल चित्र जैसा आनन्द आने लगता है//

इस रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय समर कबीर भाई।

Comment by vijay nikore on December 14, 2017 at 3:31pm

//जिस तरह आप ने बिम्बो के सहारे जीवन के हरेक पहलू का चित्रांकन किया है,बेहतरीन //

इस रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी

Comment by vijay nikore on December 14, 2017 at 3:30pm

//बेहतरीन बिम्बो से सजी उत्कृष्ट सर्जना//

इस रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय पवन मिश्र जी

Comment by vijay nikore on December 14, 2017 at 3:29pm

//सुंदर, भावपूर्ण और अच्छे प्रतीकों से भरपूर कविता//

इस रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ भाई।

Comment by vijay nikore on December 14, 2017 at 3:28pm

//बेहतरीन शिल्प में प्रतीकों/बिम्बों और शब्द चित्रों से प्रकृति, मानव जीवन, प्रेम बचपन और वर्तमान का सच शाब्दिक करती //

इस रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी।

Comment by Samar kabeer on December 3, 2017 at 5:04pm
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,आपकी कविता में जैसे शब्द बोलते हुए प्रतीत हिट हैं,और किसी चल चित्र जैसा आनन्द आने लगता है,बहुत ख़ूब वाह, हमेशा की तरह एक अच्छी रचना से रूबरू होने का मौक़ा फ़राहम किया आपने,इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिल से ढेरों बधाई स्वीकार करें ।
Comment by नाथ सोनांचली on December 3, 2017 at 2:56pm
आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवादन, जिस तरह आप ने बिम्बो के सहारे जीवन के हरेक पहलू का चित्रांकन किया है,बेहतरीन लगा। इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई निवेदित है। सादर
Comment by डॉ पवन मिश्र on December 3, 2017 at 1:55pm
बेहतरीन बिम्बो से सजी उत्कृष्ट सर्जना आदरणीय
Comment by Mohammed Arif on December 3, 2017 at 7:34am
आदरणीय विजय निकोर जी आदाब,
सुंदर, भावपूर्ण और अच्छे प्रतीकों से भरपूर कविता । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 2, 2017 at 8:58pm
बेहतरीन शिल्प में प्रतीकों/बिम्बों और शब्द चित्रों से प्रकृति, मानव जीवन, प्रेम बचपन और वर्तमान का सच शाब्दिक करती बढ़िया भावपूर्ण रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब विजय निकोरे जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service