समय की कोई अनदेखी गुमनाम कढ़ी
संभावनाओं की रूपक रश्मि से भरी
प्राण-श्वास को पूर्ण व पुलकित करती
पेड़ों की छायाएँ घटती मिटती बढ़ती-सी
धरती के गालों पर छायाएँ बेचैन नहीं थीं
किसी मीठे समीर की मीठी कोमल झकोर
हँसा कर फूलों को करती थी आत्म-विभोर
प्रात की नई उमंगों में भू को नभ से जोड़ते
जिज्ञासा की उजली चादर के फैलाव में हम
कोरे बचपन में एक ही पथ पर थे साथ चले
आयु की मामूली सच्चाईओं से घिरे हम मिले
मन था तुम्हारा, सफ़र में हम कुछ तेज़ चलें
पर कठिन अनुभव पिछले थे अवशेष मुझमें
एक ही पथ पर, मेरे धीरे चलते वह फ़ासला
बीच हमारे अनजाने बढ़ता गया, बढ़ता गया
कभी शरमाई चाँदनी ललाट पर सिंदूर लगा कर
लहरा देती थी पगलाई खिलखिलाहट तुम पर
घबराए प्रतीकों के मध्य था अब गूँज रहा मौन
झकझोर कर साँसों को शायद वह कह रहा था
बचपन का वह साथ हमारा बनावटी नहीं था
मेरी आयु के वर्षों की रग है अब फड़क रही
रक्त-कोष में है कटु मानव-अनुभवों का शोर
उफ़नती दूरी, बात पुरानी, धड़कन भी अधूरी
हवा में उड़ती कहानी-सी यादों से सुनता हूँ ..
याद तो आता होगा वह सफ़र तुमको भी कभी
बचपन की उन यादों के अँधियाले ताल में
अब आधी-पहचानी-अनजानी थरथराहट
मेरे निर्जन प्रसारों में गूँजता है एक सवाल
कह दो सच, क्या अभी भी मेरे प्रति तुमने
छुपा रखा है पलकों में वह प्यार बंद करके ?
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-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
//आपकी कविता में जैसे शब्द बोलते हुए प्रतीत हिट हैं,और किसी चल चित्र जैसा आनन्द आने लगता है//
इस रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय समर कबीर भाई।
//जिस तरह आप ने बिम्बो के सहारे जीवन के हरेक पहलू का चित्रांकन किया है,बेहतरीन //
इस रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी
//बेहतरीन बिम्बो से सजी उत्कृष्ट सर्जना//
इस रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय पवन मिश्र जी
//सुंदर, भावपूर्ण और अच्छे प्रतीकों से भरपूर कविता//
इस रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ भाई।
//बेहतरीन शिल्प में प्रतीकों/बिम्बों और शब्द चित्रों से प्रकृति, मानव जीवन, प्रेम बचपन और वर्तमान का सच शाब्दिक करती //
इस रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी।
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